धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से —654

किसी नगर में एक युवक रहता था। वह हमेशा परेशान और चिड़चिड़ा रहता। हर छोटी बात में उसे बुराई दिखती, लोग उसे देखकर कतराने लगे। एक दिन वह थककर पास ही के आश्रम में गया और संत से बोला— “गुरुदेव! मुझे हर जगह केवल नेगेटिविटी ही नज़र आती है। मन हर समय दुखी रहता है। कृपया कोई उपाय बताइए।”

संत ने मुस्कुराकर एक गिलास में पानी भरवाया और उसमें एक मुट्ठी नमक डालकर युवक को पीने को दिया। युवक ने एक घूंटभरकर कहा, “उफ्फ! यह तो बहुत कड़वा है।”

संत ने उसे पास के तालाब तक ले जाकर कहा—”अब वही मुट्ठी नमक इसमें डालो और पानी पीकर देखो।” युवक ने पानी पिया और बोला—”यह तो बिलकुल मीठा और ठंडा है।”

तब संत ने समझाया— “बेटा, दुख और नेगेटिविटी जीवन का नमक है। यह कभी खत्म नहीं होंगे। लेकिन फर्क इस बात से पड़ता है कि तुम्हारा मन गिलास जितना छोटा है या तालाब जितना विशाल। यदि मन को छोटा रखोगे, तो थोड़ी-सी नेगेटिविटी भी जीवन को कड़वा कर देगी। पर मन को विशाल बना लोगे, सकारात्मक विचार, सेवा और प्रेम से भर दोगे, तो वही नेगेटिविटी तुम्हें प्रभावित नहीं कर पाएगी।”

युवक की आंखों में चमक आ गई। उसने प्रण किया कि अब वह छोटी बातों में उलझकर खुद को कड़वा नहीं बनाएगा, बल्कि मन को विशाल रखकर हर परिस्थिति को सकारात्मकता से स्वीकार करेगा।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, नेगेटिविटी से बचने का उपाय यह नहीं कि उसे पूरी तरह मिटा दें, बल्कि अपने मन को बड़ा बनाएं। जब मन तालाब जैसा हो जाता है, तो कोई भी नकारात्मकता जीवन को कड़वा नहीं कर सकती।

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Jeewan Aadhar Editor Desk