एक समय की बात है। हिमालय की घाटियों में एक वृद्ध संत रहते थे। उनकी ख्याति दूर-दूर तक थी। लोग जीवन के रहस्य जानने, दुख दूर करने और सफलता का मार्ग पूछने उनके पास आते थे।
एक दिन एक युवा व्यापारी उनके पास पहुँचा। उसने कहा – “गुरुदेव! मैंने बहुत मेहनत की, व्यापार में पैसा भी लगाया, परंतु सफलता मुझसे हमेशा दूर भागती है। कृपया बताइए सफलता का असली राज़ क्या है?”
संत मुस्कुराए और बोले – “बेटा, सफलता पाने के लिए तीन चीज़ों को समझना जरूरी है। आओ, मैं तुम्हें एक कहानी से समझाता हूँ।”
संत ने कहना शुरू किया – “एक बार तीन यात्री जंगल में रास्ता भटक गए।
पहले यात्री ने कहा, ‘हमें रुककर आराम करना चाहिए, शायद कोई हमें खोज ले।’
दूसरे ने कहा, ‘नहीं, हमें अंदाज़ से चलना चाहिए, कभी तो रास्ता मिल जाएगा।’
तीसरे ने कहा, ‘हमें धैर्य रखकर सही दिशा ढूँढनी होगी। सूरज कहाँ उगता है, नदी किस ओर बहती है—इनसे हमें रास्ता मिल सकता है।’
पहला यात्री वहीं बैठा रह गया और भूख-प्यास से थककर कमजोर हो गया।
दूसरा यात्री बिना सोचे-समझे चलता रहा और और गहरे जंगल में खो गया।
पर तीसरे यात्री ने धैर्य और विवेक से दिशा पहचानी, सही मार्ग चुना और गाँव तक पहुँच गया। वही अंततः सफल हुआ।”
फिर संत ने व्यापारी की ओर देखते हुए कहा – “सफलता का पहला राज़ है धैर्य, दूसरा है सही दिशा (ज्ञान और विवेक) और तीसरा है निरंतर प्रयास। केवल भागदौड़ या बैठे रहना किसी को मंज़िल तक नहीं पहुँचाता। जो धैर्य से सही दिशा में लगातार चलता है, वही सफलता पाता है।”
युवा व्यापारी की आँखें चमक उठीं। उसने प्रण किया कि अब वह बिना घबराए, सही योजना और सतत प्रयास से अपना काम करेगा। धीरे-धीरे उसका व्यापार बढ़ा और वह सफल हो गया।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, सफलता भाग्य का खेल नहीं, बल्कि धैर्य, सही दिशा और निरंतर प्रयास का परिणाम है।









