धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 663

एक समय की बात है। काशी नगरी में एक संत रहते थे। वे बड़े ज्ञानी और भक्तिभाव से परिपूर्ण थे। एक दिन उनके शिष्यों ने उनसे पूछा— “गुरुदेव, मनुष्य के जीवन में भक्ति, ज्ञान और वैराग्य – इन तीनों का क्या महत्व है? क्या ये तीनों अलग-अलग मार्ग हैं या एक ही सत्य की ओर ले जाते हैं?”

संत मुस्कराए और बोले— “मैं तुम्हें एक कथा सुनाता हूँ।”

बहुत समय पहले, एक राजा था। उसके तीन पुत्र थे— भक्ति, ज्ञान और वैराग्य। राजा चाहता था कि उसके जाने के बाद उसका राज्य सुरक्षित और सुदृढ़ हाथों में रहे। लेकिन तीनों पुत्र अलग-अलग स्वभाव के थे।

भक्ति दयालु था। हर प्राणी में भगवान को देखता और सेवा करता। उसकी आंखों में करुणा और हृदय में प्रेम भरा था। ज्ञान गहन चिंतनशील था। वह शास्त्र पढ़ता, तर्क करता और सत्य की खोज करता। उसके लिए विवेक ही सर्वोच्च था। वैराग्य मौन रहने वाला था। उसे राज्य की भोग-विलास में कोई आकर्षण नहीं था। वह विरक्त रहकर आत्मा में लीन रहता।

राजा सोच में पड़ गया— “मेरे बाद राज्य कौन संभालेगा? यदि केवल भक्ति शासन करेगा तो दया के कारण व्यवस्था ढीली हो सकती है। यदि केवल ज्ञान शासन करेगा तो कठोर तर्क के कारण जनता दुखी हो सकती है। और यदि वैराग्य शासन करेगा तो राज्य की देखभाल कौन करेगा?”

राजा ने संतों की सभा बुलाई। संतों ने कहा— “महाराज! यह तीनों पुत्र अलग नहीं, बल्कि एक ही सत्य के तीन रूप हैं। जिस राज्य में भक्ति होगी, वहां प्रेम और करुणा होगी। जहां ज्ञान होगा, वहां विवेक और न्याय होगा। और जहां वैराग्य होगा, वहां लोभ-मोह से मुक्ति होगी। यदि तीनों मिलकर शासन करें, तभी राज्य समृद्ध और धर्मयुक्त होगा।”

राजा ने यह सुनकर तीनों पुत्रों को एक साथ राजगद्दी सौंप दी। फलस्वरूप राज्य में प्रेम भी रहा, न्याय भी रहा और वैराग्य का संतुलन भी। जनता सुखी हुई और राज्य आदर्श बन गया।

संत बोले— “हे शिष्यों! मनुष्य का जीवन भी एक राज्य है। यदि इसमें केवल भक्ति हो और ज्ञान न हो तो अंधविश्वास जन्म लेता है। यदि केवल ज्ञान हो और भक्ति न हो तो अहंकार उत्पन्न होता है। और यदि केवल वैराग्य हो और भक्ति-ज्ञान न हों तो शुष्क तपस्या ही रह जाती है।

इसलिए, जीवन में इन तीनों का संगम होना आवश्यक है। भक्ति हृदय को पवित्र करती है, ज्ञान विवेक देता है और वैराग्य आसक्ति से मुक्त करता है। यही सच्चा मार्ग है।”

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, भक्ति, ज्ञान और वैराग्य तीनों मिलकर ही जीवन को पूर्ण और अर्थपूर्ण बनाते हैं।

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