धर्म

स्वामी सदानंद के प्रवचनों से—247

रात का समय था, सर्वगुण सम्पन्न घड़ी आई,चन्द्र रोहिणी नक्षत्र में आया, आकाश में तारे झिलमिला रहे थे, नदियों का नीर निर्मल और स्वच्छ था। पक्षी,भंवरे गुनगुनाने लगे। शीतल,सुगन्धित समीर बह रहा था, स्वर्ग में दुंद्रभि बजने लगी, मुनि और देव-गण पुष्पों की वृष्टि करने लगे। पवित्र समय आ गया।

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कमल नयन,चतुर्भुज नारायण भगवान् बालक का रूप धारण करके वसुदेव-देवकी के समक्ष प्रकट हुए। भगवान् ने अपने हाथों में शंख-चक्र,गदा और पद्म धार किए हुए हैं। चारों ओर प्रकाश फैल गया । वसुदेव देवकी हाथ जोड़े खड़े हैं। प्रभु ने कहा, यह मेरा माया अवतार है,अब इदो भुजा में प्रकट होगा। वह मेरा पूर्ण अवतार होगा। आप मुझे गोकूल में नन्दबाबा और माता यशोदा के घर पहुंचा देना।
वसुदवे ने उन्हें टोकरे में लिटाया और सिर पर उठाया तो बेडिय़ा अपने आप टूट गई,कारागृह के बन्द दरवाजे खुलते चले गए। नन्दबाबा जब यमुना के पास पहुंचे तो यमुना भी भगवान् के चरण-स्पर्श करने के लिए हिलौरे खाने लगी। भगवान् ने अपने नन्हें चरण का स्पर्श करवाया। यमुना ने रास्ता दे दिया और वासुदेवजी गोकलू पहूंच गए। योगमाया के आवरण वश सभी गोकूल वासी गहरी नीद में सो रहे थे। देवताओ ने स्वागत किया और गाने लगे।

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वसुदेव जी ने नन्दबाबा के गोकूल में जाकर देखा कि सब के सब गोप नींद से अचेत पड़े हुए हैं। उन्होंने अपने पुत्र को यशोदा जी की शय्या पर सुला दिया और उसकी नवजात कन्या लेकर वे बंदीगृह में लौट आए। पहले की भांति सभी दरवाजे बंद हो गए। वसुदेवजी ने बालिका को देवकी के पास सुला दिया। कुछ समय पश्चात बालिका रोने लगी। रोने की आवाज सुनकर पहरेदार जाग गए और तुंरत कंस को सन्तानोत्पत्ति की सुचना दी। कंस दौड़ता हुआ आया और बोला, कहाँ है मेरा काल? मुझे उसे सौंप दो। हाथ में तलवार लिये हुए हैं, आतुरता से हाथ कांप रहा हैं ज्योंहि देखा कि नन्ही मासूम बालिका है, तो हैरान रह गया और बोला,क्या यही मुझे मारेगी? कंस ने उस लडक़ी को हाथ से ऊपर उठाया और पत्थर पर दे मारा। उसमें योगमाया के दो स्वरूप बने, एक ने तो कंस के सिर पर लात लगाई और दूसरी स्वरूपा ने आकाश में आकाशवाणी की, अरे पापी कंस । तेरा काल अवतरति हो चुका हैं और वह सुरक्षित हैं।
आकाशवाणी सुनकर कंस भयभीत हो गया। उसने अपने अपराधों की वसुदेव व देवकी से क्षमा याचना की और अपने राज्य में वापस आ गया।
इधर माता यशोदा ने प्रात:काल देखा कि बाल मुकुन्द,मोर मुकट,बंसी के साथ अंगुष्ठ पान रहे हैं। सारे बृजमण्डल में शुभ समाचार फैल गया। सभी नार-नारी मंगलाचार गाने लगे। नन्दबाबा उस समय गोशाला में थे, उनकी बहन सुनन्दा ने समाचार दिया, भैया भाभी की गोद में बाल गोपाल खेल रहा हैं। सुनकर नन्दबाबा आनन्द से नाचने लगे। नन्दबाबा ने पुत्र जन्मोत्सव की खुशी में लाखों गायों का दान किया।
सभी ब्रज वासी गा रहे हैं और नाच रहे हैं-
नन्द घर आनन्द भयो, जय कन्हैया लाल की।
मंगल आरती उतारी गई। नन्दबाबा के घर सभी ब्रजवासी बधाई हो, बधाई हो के नारे लगा रहे हैं और खुशियां मना रहे हैं तथा नाच -गा रहे हैं।
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Jeewan Aadhar Editor Desk

ओशो : साधना

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