दशहरे के दिन संत मंच पर खड़े हुए। सामने भीड़ थी और उसी भीड़ में कुछ नेता भी पंक्ति में बैठे थे।
संत ने मुस्कुराकर कहा— “भाइयों, हर साल हम रावण का पुतला जलाते हैं। लेकिन सोचो, अगर सच में रावण मर गया होता तो क्या आज भी भ्रष्टाचार, झूठे वादे और कुर्सी के लिए लड़ाई होती?”
लोग हँस पड़े। नेता थोड़े असहज हुए।
संत ने आगे कहा— “रावण के दस सिर थे। आज के नेताओं के सिर देखो—एक सिर लालच का, दूसरा सत्ता का, तीसरा अहंकार का, चौथा झूठे भाषणों का, पाँचवाँ रिश्वत का, छठा भाई-भतीजावाद का, सातवाँ जाति-धर्म की राजनीति का, आठवाँ वादों को भूलने का, नौवाँ जनता को बाँटने का, और दसवाँ कुर्सी से चिपके रहने का। बताओ भाइयों, कौन-सा सिर बचा है जो आज के नेताओं में नहीं है?”
भीड़ ठहाका मारकर हँसने लगी। कुछ लोगों ने तालियाँ भी बजाईं।
संत ने गंभीर होकर कहा— “राम तो जनता है, और जनता सोई रहे तो रावण हमेशा जीवित रहेगा। जब जनता जागेगी, तभी असली रावण मरेगा। याद रखना, केवल पुतला जलाने से काम नहीं चलेगा, अब हमें नकली वादों और भ्रष्ट नेताओं के पुतले को भी जलाना होगा।”
नेताओं के चेहरे उतर गए, लेकिन जनता के चेहरों पर जोश आ गया। सबने एक स्वर में कहा—
“अबकी बार हम असली रावण को पहचानेंगे!”
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, आज का रावण कुछ नेताओं के रूप में जीवित है। उसके दस सिर भ्रष्टाचार, झूठ और लालच के प्रतीक हैं। असली विजयादशमी तभी होगी जब जनता सजग होकर ऐसे रावण जैसे नेताओं को सत्ता से दूर रखेगी।