पुराने समय की बात है। एक व्यक्ति अपनी गरीबी से बेहद दुखी था। उसे लगता था कि धन की कमी ही उसकी हर परेशानी की जड़ है। एक दिन उसने एक अमीर सेठ को देखा, जिसकी जीवनशैली देखकर वह प्रेरित हुआ। उसने ठान लिया कि उसे भी धनवान बनना है। उसने मेहनत शुरू की, थोड़ा-बहुत पैसा भी इकट्ठा किया, लेकिन धनवान बनने की कल्पना जितनी भव्य थी, वास्तविकता में उतना धनवान बनना बहुत मुश्किल था। धन कम था तो उसका मन भी अशांत था।
एक दिन उसकी मुलाकात एक विद्वान से हुई। उस विद्वान से बातचीत के बाद उसने सोचा कि असली सुख तो ज्ञान में है, न कि धन में।
विद्वान से मिलने के बाद उसने ग्रंथ और अच्छी-अच्छी किताबें पढ़ना शुरू कर दिया, किताबों में डूब गया। कई महीने बीत गए, लेकिन फिर उसका मन पढ़ाई से भी हटने लगा।
इसके बाद वह एक संगीतज्ञ से मिला, जिसका संगीत उसे आत्मिक शांति देने लगा। उसने सोचा अब मुझे संगीतकार बनना चाहिए। कुछ समय तक उसने संगीत सीखने की कोशिश की, लेकिन इस बार भी उसका मन ज्यादा समय तक संगीत में नहीं टिका।
इतना सब करने के बाद उस व्यक्ति की मुलाकात एक संत से हुई। दुखी व्यक्ति ने संत को पूरी बात बता दी। संत ने उसकी पूरी बात सुनने के बाद कहा– “तुम हर बार अपने लक्ष्य बदलते जा रहे हो। जब तक तुम एक लक्ष्य पर टिककर, पूरी निष्ठा से काम नहीं करोगे, तब तक सफलता तुमसे दूर ही रहेगी। मन को भटकाने के लिए संसार में बहुत आकर्षण हैं। अगर तुम हर बार बहकते रहोगे तो कभी भी लक्ष्य हासिल नहीं कर पाओगे।”
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जीवन में स्पष्ट दिशा के बिना मेहनत बिखर जाती है। एक लक्ष्य तय करिए और उसी पर लगातार काम करते रहिए। ज्ञान, धन, प्रसिद्धि, कला, हर एक में अपना आकर्षण है, लेकिन इन सब को एक साथ नहीं पाया जा सकता। जो एक ही रास्ते पर लगातार चलता है, वही अंततः लक्ष्य तक पहुंचता है।
बार-बार रास्ता बदलने से नई शुरुआत करनी पड़ती है। हर बार शून्य से शुरू करना समय और ऊर्जा दोनों की बर्बादी है। धन, ज्ञान, संगीत, इनमें से कोई भी आपको तब तक पूर्ण सुख नहीं दे सकता, जब तक आपका मन स्थिर न हो। सच्ची खुशी बाहर नहीं, बल्कि मन की शांति और संतोष में है। जो भी काम करें, उसे पूरी ईमानदारी और धैर्य के साथ करें। ऐसे काम करने के बाद जो सफलता धीरे-धीरे आती है, लेकिन जब आती है तो वह लंबे समय तक टिकती है।