एक बार एक संत अपने शिष्य के साथ नदी किनारे टहल रहे थे। सुबह का समय था—हल्की ठंडी हवा, सूर्य की पहली किरण और वातावरण में शांति का ऐसा संगम जिससे मन अपने-आप प्रसन्न हो जाए।
संत ने शिष्य से पूछा, “बताओ, सुबह सबसे खास क्यों होती है?”
शिष्य ने कई जवाब दिए—ताज़ी हवा, ऊर्जा, शांति… पर संत मुस्कुराए और बोले— “नहीं… असली कारण यह है कि हर सुबह अपने साथ नई क्षमता लेकर आती है।”
शिष्य चकित होकर बोला, “गुरुदेव, नई क्षमता कैसे?”
संत ने पास ही पड़े एक छोटे से बीज को उठाया और कहा— “यह बीज चाहे कल तक धरती के अंधेरे में पड़ा था, पर आज की सुबह इसकी क्षमता बदल सकती है। आज यह अंकुर बन सकता है, कल पौधा और एक दिन विशाल वृक्ष। कल की असफलता इसकी क्षमता तय नहीं करती—आज की सुबह करती है।”
फिर संत बोले— “मनुष्य भी ऐसा ही है। कल तुम थक गए, हार गए, असफल हुए, निराश हुए— पर आज की सुबह तुम्हें फिर से एक नया आरंभ करने की शक्ति दे रही है। हर सूर्योदय तुम्हें यह संदेश देता है कि ‘कल जो नहीं हुआ, वह आज संभव है।’”
शिष्य की आंखों में आशा जाग उठी।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, “जो व्यक्ति सुबह की क्षमता को पहचान लेता है, वही जीवन में हर दिन नया निर्माण कर लेता है। सुबह अवसर नहीं, एक आशीर्वाद है— उसे थाम लो, और अपने जीवन को बदल दो।”








