धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—747

एक राज्य में अर्जुन नाम का एक युवक रहता था। उसके भीतर बड़े सपने थे—कुछ ऐसा करने का जो उसके गाँव, समाज और देश का नाम रोशन कर दे। पर गरीबी, साधनों की कमी और आसपास के लोगों की हंसी उसका रास्ता बार-बार रोकती थी।

जो भी मिलता, यही कहता— “इतिहास तो बड़े लोग ही लिखते हैं… तेरे बस की बात नहीं!” इन शब्दों ने उसे भीतर तक तोड़ दिया। एक दिन निराश होकर वह पहाड़ों के बीच बसे एक प्राचीन आश्रम में पहुँचा, जहाँ एक संत तपस्या करते थे। युवक ने झुककर कहा— “गुरुदेव, मैं कुछ बड़ा करना चाहता हूँ, पर मेरे पास न धन है, न साधन। लोग कहते हैं मैं इतिहास नहीं बना सकता। क्या सच में इतिहास लिखने के लिए कलम और ताकत चाहिए?”

संत मुस्कुराए, और उसे चुपचाप अपने साथ जंगल की ओर ले गए।

रास्ते में एक विशाल पेड़ जड़ से टूटा हुआ पड़ा था। संत बोले— “अर्जुन, देखो यह पेड़ कितना बड़ा था, पर एक तूफान ने इसे गिरा दिया। क्यूँ?”
अर्जुन बोला— “क्योंकि इसकी जड़ें कमजोर थीं।”
संत बोले— “सही। बिना मजबूत जड़ों के ऊँचाई काम नहीं आती। इसी तरह जीवन में साधन पेड़ की ऊँचाई हैं और हौंसले उसकी जड़ें। ऊँचाई टूट सकती है… पर जड़ें मजबूत हों तो नया पेड़ फिर उग जाता है। इतिहास ऊँचाई से नहीं, जड़ से बनता है।”

वे आगे बढ़े तो एक तेज़ बहती नदी मिली।
संत ने कहा— “यह नदी पहाड़ों को काटकर रास्ता बनाती है। इसे किसने कलम दी? किसने कागज दिया?”
अर्जुन बोला— “किसी ने नहीं।”
संत ने मुस्कुराकर कहा— “फिर भी इसका रास्ता एक दिन इतिहास बन जाता है। क्यों? क्योंकि इसे रोकने की जितनी कोशिश की जाती है, यह उतनी ही ताकत से आगे बढ़ती है। इतिहास लिखने के लिए कलम नहीं, ऐसी ही धारा जैसे हौंसले चाहिए।”

रास्ते में उन्हें एक कोकून मिला जिसमें एक तितली निकलने की कोशिश कर रही थी।
अर्जुन दया से बोला— “गुरुदेव, मैं इसे निकाल दूँ?”
संत ने रोकते हुए कहा— “नहीं। इसका संघर्ष ही इसकी उड़ान बनाता है। अगर तुम इसे बिना मेहनत के बाहर निकाल दोगे, तो यह उड़ ही नहीं पाएगी।”

कुछ देर में तितली ने संघर्ष करके खुद ही कोकून तोड़ा और उड़ गई।

संत ने कहा— “याद रखो, संघर्ष तुम्हें तोड़ने नहीं आते… तुम्हें उड़ाने आते हैं। जिसके हौंसले उसके पंख हों, उसे आसमान रोक नहीं सकता।”

अर्जुन की आंखों में चमक आ गई। संत ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा— “इतिहास लिखने के लिए कलम की नहीं, हौंसलों की जरूरत होती है। कलम से सिर्फ शब्द लिखे जाते हैं…पर हौंसलों से दुनिया।”

उस दिन अर्जुन ने तय कर लिया कि वह किसी साधन का रोना नहीं रोएगा। वह रोज़ छोटे-छोटे कदम बढ़ाने लगा, मेहनत में अपनी जान लगा दी और कुछ ही वर्षों में अपने क्षेत्र के हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा बन गया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जिसके भीतर आग हो, उसकी कहानी कोई मिटा नहीं सकता। इतिहास वही लिखता है…जो हौंसलों से लड़ता है।

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