एक बार एक युवा साधक अपने गुरु के पास पहुँचा। चेहरे पर चिंता, मन में उलझन और होंठों पर एक ही सवाल— “गुरुदेव, मैं समय से बार-बार हार जाता हूँ… क्या करूँ?”
गुरु मुस्कुराए और उसे आश्रम के पीछे स्थित एक पुराने पेड़ के नीचे ले गए। वहाँ वर्षों से गिरते-झरते पत्तों का ढेर था। गुरु ने एक पत्ता उठाया और बोले— “बेटा, क्या तुम बता सकते हो कि यह पत्ता कब गिरा?”
साधक बोला, “नहीं गुरुदेव, यह तो पता ही नहीं चल सकता।”
गुरु ने कहा— “इसीलिए कहा जाता है कि समय से न कोई पहले जीत सकता है, न बाद में हार सकता है। समय अपनी गति से चलता है—हम उससे लड़ नहीं सकते, हम केवल उससे सीख सकते हैं।”
फिर गुरु ने आगे समझाया— समय हमें कभी खाली नहीं लौटाता—या तो अनुभव देता है या अवसर। समय को रोकना नहीं, समझना होता है—जब हम समझ जाते हैं, तब जीवन सरल हो जाता है। समय बदलता है, और उसी के साथ इंसान भी बदलता है—इसे ही विकास कहते हैं।
साधक ने कहा, “तो क्या मैं कभी समय के अनुसार चल पाऊँगा?”
गुरु ने प्रेम से उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा— “जब तुम हर अनुभव में सीख ढूँढोगे, हर कठिनाई में सुधार देखोगे, और हर पल का उपयोग करोगे—तब तुम जानोगे कि समय न कोई दुश्मन है, न कोई प्रतियोगी। समय तो बस एक गुरु है—जो सिखाता है, आगे बढ़ाता है।”
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, समय को जीतने की नहीं, समझने की कोशिश करो। क्योंकि समय हमेशा वही सिखाता है, जो जीवनभर काम आता है।








