विचार

29 जून : आदमपुर के सुनहरे दिन की हुई थी शुरुआत, चौ.देवीलाल को मात बनकर सीएम बन गए चौ.भजनलाल

आदमपुर,
29 जून 1979 को आदमपुर का भाग्य बदल गया था। इस दिन आदमपुर विधायक चौ.भजनलाल पहली बार सीएम बने थे। इसके बाद चौ.भजनलाल तीन बार सीएम बने और आदमपुर की पहचान को विश्व के पटल पर कायम की। 29 जून 1979 का दिन हरियाणा ही नहीं, बल्कि पूरे देश की राजनीति में भी अविस्मरणीय रहेगा। इसी दिन चौधरी भजनलाल ने पहली बार देवीलाल सरकार को गिराकर नाटकीय अंदाज में हरियाणा प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।
ऐसे बने पहली बार सीएम
दरअसल, लोगों को चौ.भजनलाल की असाधारण राजनीतिक क्षमताओं के बारे में तब पता चला जब 1979 में उन्होंने चौधरी देवीलाल की सरकार में डेयरी मंत्री रहते हुए तख्तापलट कर खुद की सरकार बना ली थी। वह भी तब जब खतरे की आशंका के बीच चौधरी देवीलाल ने करीब 42 विधायकों को तेजाखेड़ा के अपने किलेनुमा घर में रखा था। इनको बाहर आने-जाने की मनाही थी। इसके बावजूद चौ.भजनलाल ने ऐसी राजनीतिक चाल चली कि दिग्गज देवीलाल मात खा गए और सीएम बन गए चौ.भजन लाल।
मंत्री से बने सीएम
वर्ष 1977 के विधानसभा चुनाव में हरियाणा में जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई थी। उस समय जनता पार्टी को 75, कांग्रेस को तीन व विशाल हरियाणा पार्टी को पांच सीटें मिली थी। सात निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीते थे। नब्बे सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के लिए सिर्फ 46 की जरूरत थी। लिहाजा देवीलाल को 75 के बहुमत के साथ सत्ता संभालने में कोई मुश्किल नहीं हुई, मगर तब उन्हीं की सरकार में उन्हीं की पार्टी के आदमपुर से विधायक और पशुपालन मंत्री चौ. भजनलाल ने थोड़े दिनों बाद ही बाजी पलट दी।
किले के ताले से उड़ा ले गए विधायक
उन्होंने अपने समर्थन में विधायक जुटाकर जनता पार्टी को दो फाड़ कर दिया। अपनी सरकार बचाने के लिए चौ.देवीलाल ने 42 विधायकों को तेजाखेड़ा फार्म पर एकत्रित भी किया, मगर चौ.भजनलाल की चतुराई के आगे उनकी दाल नहीं गली। चौ.देवीलाल को कुर्सी से हटना पड़ा और 29 जून 1979 को चौ.भजनलाल मुख्यमंत्री बन गए। चौ.भजनलाल ने चौ. देवीलाल के पाले में खड़े 42 में से दो विधायकों को भी अपने साथ मिला लिया था। इसकी लंबी कहानी है, जिसके किस्से चौपालों तक प्रचलित है। बाद में चौ.भजनलाल कांग्रेसी बन गए और तीन बार प्रदेश की सत्ता संभाली।
36 विधायक बन गए 52
चौ. भजनलाल ने वर्ष 1982 के चुनाव में भी कमाल दिखाया। चौ.भजनलाल के नेतृत्व में कांग्रेस को 36 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि भाजपा से चुनाव पूर्व गठबंधन के साथ मैदान में उतरे भारतीय राष्ट्रीय लोकदल को गठबंधन के साथ 37 सीटें मिली। सब कुछ राज्यपाल पर निर्भर था। राज्यपाल जीडी तपासे ने पहले चौ. देवीलाल को 22 मई 1982 को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर दिया, मगर चौ. भजनलाल ने निर्दलीयों की मदद से अपने पाले में 52 विधायक कर लिए। ठोस बहुमत के बल पर भजन दूसरी बार सीएम बने। इस प्रकरण से चौ. देवीलाल के क्रोध की सीमा नहीं रही। वह भाजपा विधायकों के साथ राजभवन पहुंचे। कहते हैं राज्यपाल से बहस के दौरान देवीलाल ने आपा खो दिया था। तब तक समीक्षक चौ.भजनलाल को राजनीति का पीएचडी कहने लग गए थे।
2005 में बेटे पर भरोसा कर खा गए मात
वर्ष 1991 में भजनलाल तीसरी बार सीएम बने, मगर इसके बाद उनकी राजनीति को ग्रहण लग गया। वर्ष 2005 में कांग्रेस ने चौ.भजनलाल के नेतृत्व में बहुमत मिला। लेकिन उन्होंने अपने बेटे कुलदीप बिश्नोई को हाईकमान से बातचीत के लिए भेजा। कुलदीप बिश्नोई हाईकमान की बातों में बहक गए और भूपेंद्र सिंह हुड्डा सीएम बन गए। इसके बाद चौ.भजनलाल को गहरा सदमा लगा। उन्होंने बेटे कुलदीप बिश्नोई के साथ हरियाणा जनहित कांग्रेस भी बनाई, लेकिन कुलदीप बिश्नोई उसे भी ज्यादा संभाल नहीं पाएं। चौ.भजनलाल अब इस दुनिया में नहीं है, मगर जाट केंद्रित राजनीति में उनकी गैर जाट की राजनीति हमेशा चर्चा में रहेगी।

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