हिसार (राजेश्वर बैनीवाल)
हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों के साथ ही नई सरकार बनाने बारे सरगर्मियां तेज हो गई है। भाजपा को इस चुनाव में करारी शिकस्त झेलनी पड़ी है और हालत यह हो गई है कि चुनाव में 75 पार का नारा देने वाली पार्टी अब दूसरे दलों या आजाद उम्मीदवारों के रहमो-कर्म पर निर्भर हो गई है। इस सबके बीच जो बात उभर कर आ रही है, वो ये है कि प्रदेश में भाजपा नहीं हारी बल्कि उस घमंड की हार हुई है, जिसने भाजपा के नेताओं को बहुत ऊंचा उठा दिया था और आम जनता ही नहीं, अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ता उन्हें चींटी के समान दिखाई देने लगे थे। चुनाव परिणाम ने यह भी साफ कर दिया है कि यहां न तो धारा 370 चली और न ही 35ए, चली, यहां चला केवल जनता का गुस्सा, जिसको कांग्रेस व भाजपा ने लपक लिया।
जी हां, चुनावी नतीजों से साफ है कि प्रदेश में न मोदी लहर चली, न धारा 370 और न ही वे मुद्दे, जिनके सहारे सरकार व उसके मंत्री आए दिन जनता को उलझाए रखते थे और असल मुद्दों से ध्यान भटकाए रखते थे। चुनावी नतीजों के बाद यह चर्चा आम है कि चुनाव में भाजपा नहीं हारी बल्कि उसका घमंड व अति आत्मविश्वास उस पर भारी पड़ा है। कार्यकर्ताओं को कार्यकर्ता की जगह बंधुआ मजदूर समझना आम बात हो गई थी और दूसरों दलों से आए नेताओं व चाटुकारों की पौ-बारह थी। अनेक मामले ऐसे सामने आए, जब देखा गया कि मुख्यमंत्री व उनके मंत्री किस तरह कार्यकर्ताओं का अपमान कर रहे हैं, वे कार्यकर्ता जिन्होंने बुरे वक्त में पार्टी का साथ दिया, वे मन-मसोस कर रह जाते और नये आए फायदा उठा जाते।
सरकार के पांच साल के शासनकाल में अनेक चेयरमैन व अध्यक्ष वे लोग बनाए गए जो दूसरें दलों से आए थे और वे चेयरमैन व अध्यक्ष पुराने वालों पर हुक्म चलाते रहते, पुराने वाले अंदर ही अंदर घुटते रहते। जो रवैया पुराने कार्यकर्ताओं के साथ सरकार के मुखिया ने अपनाया, वही रवैया लोकल विधायकों ने भी अपनाया और पुरानों पर दरांती चलाना जारी रखा। पांच साल वनवास झेलने के बाद टिकट वितरण में भी पुराने कार्यकर्ताओं को तवज्जो नहीं मिली। पिछले चुनाव की तरह इस चुनाव में भी दूसरों दलों से आने वालों को तवज्जो दी गई और अपने वालों को हाशिए पर रखा गया। संगठन पर काबिज कुछ लोगों ने टिकट वितरण में भी अपनी चलाई। हालांकि भाजपाई गुटबाजी से इंकार करते रहे लेकिन संगठन से जुड़े कुछ लोगों ने अपने ही गुट को मजबूत करने का ऐसा प्रयास किया कि पूरा गुट ही चुनाव हार गया।
कार्यकर्ताओं में चर्चा के अनुसार मंत्रियों का घमंड तो सातवें आसमान पर था। यहां तक कि मंत्रियों के इर्द-गिर्द रहने वाले भी अपने को मंत्रियों से कम नहीं समझते थे, जिस वजह से कार्यकर्ता व जनता उनसे दूर होते गये। हालत यह हुई कि मंत्री अनिल विज को छोड़कर सारे मंत्री चुनाव हार गये। बताया जा रहा है कि एक मंत्री ने तो अपनी खराब हालत देखकर कार्यकर्ताओं के समक्ष यहां तक कह दिया था कि मेरे से भी, मेरे परिवार वालों से भी और इर्द-गिर्द रहने वालों से भी गलतियां हुई है, माफी चाहता हूं लेकिन आगे कभी ऐसा नहीं होगा। क्षेत्र व विकास का हवाला देकर अनेक रोना रोया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
मंत्रियों ही नहीं, मुख्यमंत्री का घमंड भी कम नहीं था। करनाल में सेल्फी ले रहे अपने ही कार्यकर्ता का मोबाइल फोन फेंकने, शिकायत सुना रहे बुजुर्गों को जेल में डलवा देने की धमकी देने के बाद हिसार के बरवाला में अपनी ही पार्टी के बुजुर्ग को गर्दन काटने तक की उन्होंने धमकी दे डाली, जिस पर वे भारी आलोचना का शिकार हुए। इसकी शिकायत भी मानवाधिकार आयोग में चल रही है। कुल मिलाकर इस चुनाव में भाजपा के साथ-साथ उसके घमंड की हार भी हुई, जिस पर पार्टी को अब फुर्सत के क्षणों में चिंतन करना चाहिए।
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