एक दिन बुद्ध के शिष्य ने पूछा कि तथागत क्या आपके सत्संग सुनने वाले सभी लोगों का कल्याण होता है? क्या सभी लोगों के दुख दूर होते हैं?
बुद्ध ने कहा कि कुछ का होता है और कुछ का नहीं होता है। शिष्य ने फिर पूछा कि आपके उपदेशों को सुनने के बाद भी सभी लोगों को शांति क्यों नहीं मिल पाती है?
बुद्ध ने इस प्रश्न के उत्तर में एक प्रश्न पूछा कि अगर कोई व्यक्ति तुमसे राजमहल जाने का रास्ता पूछे और तुम्हारे रास्ता बताने के बाद भी वह भटक जाए तो तुम क्या करोगे?
शिष्य ने कहा कि तथागत मेरा काम सिर्फ उसे रास्ता बताने का है, अगर वह फिर भी रास्ता भटक जाता है तो मैं क्या कर सकता हूं?
बुद्ध ने कहा कि ठीक इसी तरह मेरा काम भी लोगों का मार्गदर्शन करने का है। मैं लोगों को सिर्फ सही-गलत का अंतर बता सकता हूं। मैं जो उपदेश देता हूं, उन्हें जीवन में उतारना है या न उतारना, ये निर्णय लोगों को ही करना है। जो लोग इन अच्छी बातों को जीवन में उतार लेते हैं, उनका कल्याण हो जाता है, उनके जीवन में सुख-शांति आ जाती है। जो लोग इन बातों को नहीं अपनाते हैं, वे हमेशा दुखी रहते हैं और भटकते रहते हैं।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, उपदेश हमें सिर्फ रास्ता दिखाते हैं, इन रास्तों पर चलना या न चलना, ये निर्णय हमें ही करना होता है।









