उत्तर प्रदेश देश

चंद्रशेखर के रुप में दलितों को मिल रहा है नया उग्र नेतृत्व

लखनऊ
पश्चिमी यूपी जातीय हिंसा बढ़ने के साथ ही भीम आर्मी को दलित समुदाय के बीच काफी सहयोग मिलता नजर आने लगा है।
इस दलित संगठन को पश्चिमी यूपी के जिलों, उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा के दलितों के बीच भीम सेना के नाम से भी जाना जाता है। इसके संयोजक चन्द्रशेखर को दलित समुदाय से जबरदस्त समर्थन और सहानुभूति हासिल हो रही है। दलित समुदाय चंद्रशेखर को वित्तीय मदद भी दे रहा है।
दलितों को मिले नये नेता चंद्रशेखर का उभार कोई एक—दो दिनों में नहीं हुआ बल्कि वह पिछले 5 से ज्यादा सालों से समुदाय के बीच काम कर रहे थे। 2008-09 में उन्होंने सहारनपुर के एएचपी इंटर कॉलेज में पीने के पानी को लेकर हुए विवाद में सवर्ण छात्रों, मुख्य तौर पर राजपूत छात्रों को चुनौती दी थी। इस कॉलेज में 2 अलग-अलग नल थे। एक दलितों के लिए तो दूसरा सवर्णों के लिए। चन्द्रशेखर ने इस भेदभाव को चुनौती दी और कॉलेज प्रबंधन को सभी छात्रों के लिए एक ही नल की व्यवस्था करने को मजबूर किया। इस घटना ने दो जातियों के सदस्यों के बीच कटुता को बढ़ाया।तभी से चंद्रशेखर ने दलितों के लिए अपना संघर्ष जारी रखा। इसी दौरान​ दलित ऐक्टिविस्ट सतीश कुमार शिवसेना जैसा संगठन खड़ा करना चाहते थे। जब उन्होंने चंद्रशेखर में ‘काबिलियत’ देखी तो उन्होंने उसे भीम आर्मी के नेता के तौर पर तराशना शुरू कर दिया। इस संगठन का अब तक रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है।
चन्द्रशेखर खुद को ‘रावन’ कहा जाना पसंद करते हैं। फेसबुक पर उनकी कई आईडी हैं। भीम आर्मी सबसे पहले 17 अप्रैल 2016 को तब सुर्खियों में आई जब राजपूतों ने दलितों की एक बारात को अपने दबदबे वाली कॉलोनी दरियापुर गांव से गुजरने से रोक दिया। इसके कुछ दिनों बाद दलितों ने घरकौली गांव के प्रवेश मार्ग पर ‘जय भीम, जय भारत, दी ग्रेट चमार घरकौली’ के होर्डिंग लगा दिए। इससे दलितों और राजपूतों में टकराव हुआ। पुलिस ने होर्डिंग पर काला पैंट लगा दिया जिससे एक बार फिर राजपूतों और दलितों में तनाव बढ़ा और चंद्रशेखर को अपनी ताकत दिखाने और भीम आर्मी के नेता के तौर पर खुद को स्थापित करने का मौका मिला।
इस महीने भीम आर्मी ने तब फिर सुर्खियां बटोरी जब उसके सदस्यों ने राजपूतों द्वारा निकाले जा रहे राणा प्रताप जयंती के जुलूस पर आपत्ति की। भीमसेना के इस समय 7,000 से ज्यादा सक्रिय सदस्य हैं जो संगठन के लिए समर्थन बढ़ाने में जुटे हैं। बीएसपी की कमजोर पड़ती पकड़ के बीच भीम आर्मी के रुप में दलितों को एक नया विकल्प मिलता नजर आ रहा है। ऐसे में आने वाले समय में पूरे उत्तर भारत में भीम आर्मी की जड़े जमने के कयास लगाये जाने लगे है।

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