धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से-10

एक घने जंगल में एक बड़ा-सा नाग रहता था। वह चिड़ियों के अंडे, मेढ़क तथा छिपकलियों जैसे छोटे-छोटे जीव-जंतुओं को खाकर अपना पेट भरता था। रातभर वह अपने भोजन की तलाश में रहता और दिन निकलने पर अपने बिल में जाकर सो रहता। धीरे-धीरे वह मोटा होता गया। वह इतना मोटा हो गया कि बिल के अंदर-बाहर आना-जाना भी दूभर हो गया।

आखिरकार, उसने बिल को छोड़कर एक विशाल पेड़ के नीचे रहने की सोची लेकिन वहीं पेड़ की जड़ में चींटियों की बांबी थी और उनके साथ रहना नाग के लिए असंभव था। सो, वह नाग उन चींटियों की बांबी के निकट जाकर बोला, ‘‘मैं सर्पराज नाग हूँ, इस जंगल का राजा। मैं तुम चींटियों को आदेश देता हूं कि यह जगह छोड़कर चले जाओ।”
वहां और भी जानवर थे, जो उस भयानक सांप को देखकर डर गए और जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे लेकिन चींटियों ने नाग की इस धमकी पर कोई ध्यान न दिया।

वे पहले की तरह अपने काम-काज में जुटी रहीं। नाग ने यह देखा तो उसके क्रोध की सीमा न रही।

वह गुस्से में भरकर बांबी के निकट जा पहुँचा, और बांबी रेत ड़ालकर उसे नष्ट करने की कोशिश करने लगा। यह देख हजारों चींटियाँ उस बांबी से निकल, नाग से लिपटकर उसे काटने लगीं। उनके डंकों से परेशान नाग बिलबिलाने लगा। उसकी पीड़ा असहनीय हो चली थी और शरीर पर घाव होने लगे। नाग ने चींटियों को हटाने की बहुत कोशिश की लेकिन असफल रहा। कुछ ही देर में उसने वहीं तड़प-तड़प कर जान दे दी।

एकता से कार्य करने पर शक्तिशाली शत्रु को भी ध्वस्त किया जा सकता है, तो फिर आज घरों में टूटन क्यों… ​प्रिय सुंदरसाथ, जिस परिवार में एकता होती है—उस परिवार का कोई संकट कुछ नहीं बिगाड़ साकता।

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Jeewan Aadhar Editor Desk

ओशो, काहे होत अधीर (पलटू), प्रवचन 12