धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—41

एक राजा था, उसकी एक बेटी मीरा थी। मीरा की मां की मौैत छोटी उम्र में ही हो गई थी। इसके चलते उसके पिता को ही उसका पालन -पोषण किया। राजा चाहता था कि उसकी पुत्री का विवाह किसी ऐसे शहज़ादे के साथ हो जो ज्यादा सूझबान हो और जो उसकी पुत्री का ख्याल अच्छे तरीके से कर सके। यह सोचकर कई देशों के राजकुमारों को महल में बुलाया। ताकि वो अपनी पुत्री के लिए योग वर ढूंढ सके।

बहुत सारे देशों के राजकुमार राजा के दरबार में पहुंचे राजा ने उनकी खूब सेवा की और बाद में उनसे कई तरह के प्रश्न भी पूछे। अंत में राजा ने उन सभी राजकुमारों में से तीन राजकुमार चुने। अब वो इन तीनों राजकुमारों में से किसी एक को अपनी पुत्री के लिए चुनना चाहता था। राजा ने तीनों राजकुमारों को अपने देश लौटने के लिए कहा और दो महीनों के बाद उसकी पुत्री के लिए कोई ख़ास तोहफ़ा लेकर आने के लिए कहा। जिसका तोहफ़ा ख़ास होगा मैं अपनी पुत्री का विवाह उससे ही करूंगा। तीनों राजकुमार अपने – अपने देश वापिस लौट गए।

आखिरकार एक दिन वो दिन भी आ गया जब उन तीनों राजकुमारों को राजा के पास तोहफ़ा लेकर आना था। तीनों राजा के दरबार में अपना – अपना तोहफ़ा लेकर पहुंचे। राजा ने पहले राजकुमार से पूछा कि वो राजकुमारी के लिए क्या तोहफ़ा लेकर आया है?? उसने कीमती तलवार निकाली और राजा को भेंट कर दी। इस तलवार पर हीरे जड़े हुए थे। राजा ने तलवार लेकर राजकुमार से पूछा इस तलवार की कोई खासियत तब राजकुमार ने बोला, जो भी इस तलवार से युद्ध करेगा वो कभी नहीं हारेगा।
अब राजा ने दुसरे राजकुमार से कहा कि वो क्या तोहफ़ा लेकर आया है?? दुसरे राजकुमार ने राजा के सामने हीरों और मोतियों से भरी एक सोने की थाली लाकर रख दी और कहा महाराज मैं यह हीरे और मोती राजकुमारी के लिए लेकर आया हूं । राजा ने पुछा इस थाली में कोई ख़ास बात राजकुमार ने कहा अगर कोई इस थाली के सामने अपना चेहरा करके इससे कोई चीज़ मांगेगा तो उसकी यह ख्वाहिश पूरी हो जाएगी। अब दोनों राजकुमारों के तोहफे बहुत कीमती थे और राजा के लिए शाहिज़ादा चुनना आसान नहीं था।

अब राजा ने तीसरे राजकुमार से कहा, अब तुम अपना तोहफ़ा पेश करो। तीसरा राजकुमार राजा के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और बोला महाराज में राजकुमारी के लिए कोई तोहफ़ा नहीं लेकर आया हूं। मुझे कोई चीज़ खरीदने का मौका ही नहीं मिला। राजा को गुस्सा आया और उसने राजकुमार से कहा आखिर वो कौन—सा कारण था कि तुम राजकुमारी के लिए कोई तोहफ़ा नहीं लेकर आ सके। महाराज, जब दो महीने पहले में अपने देश वापिस लौट रहा था तो मुझे रास्ते में एक बीमार आदमी दिखाई दिया। उसे बहुत पीड़ा हो रही थी। वो पीड़ा से चिल्ला रहा था, उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। मैं उसे अपनी पीठ पर उठा कर हकीम के पास ले गया। हकीम ने उसे देखकर बताया के इसे ठीक होने में कम से कम 2 महीने लगेंगे। और इसकी देखभाल के लिए किसी एक को इसके पास ठहरना पड़ेगा। इसीलिए मैं अपने देश लौट ही नहीं सका। अब वो मरीज़ पूरी तरह से ठीक हो चुका है, मैं उसे अपने साथ आपके दरबार में लेकर आया हूँ । महाराज इसी कारण से मैं राजकुमारी के लिए कुछ भी नहीं लेकर आ सका। यह सुनते ही राजा ने राजकुमार को अपने पास बुलाया और उसे शाबाशी दी और कहा तुम्हारा तोहफ़ा तो सबसे कीमती तोहफ़ा है।

एक बीमार व्यक्ति की जान बचाकर तुमने बहुत नेक काम किया है और मेरी तलाश अब खत्म हो गई है। मेरी पुत्री के लिए उसे एक अच्छा वर मिल गया है। इसके बाद राजा ने अपनी पुत्री का विवाह उस तीसरे राजकुमार के साथ बड़ी ही धूम–धाम के साथ किया।

प्रेमी सुंदरसाथ जी, सेवा,हमदर्दी और प्यार से बड़ा कोई तोहफ़ा नहीं होता।

Related posts

ओशो : झुकने की कला

Jeewan Aadhar Editor Desk

ओशो:कठोपनिषद

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों में से-4

Jeewan Aadhar Editor Desk