धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—44

एक बार दुर्योधन इन्द्रप्रस्थ महल देखने गया, बहुत ही सुन्दर कारीगरी से बना हुआ था, जल के स्थान पर स्थल और स्थल के स्थान जल दिखाई पड़ता था। जल की जगह पर स्थल का भ्रम होने के कारण दुर्योधन का पांव फिसल गया और पानी में गिर पड़ा। पानी से सब कपड़े भीग गए, यह दृश्य महलों में बैठी द्रौपदी ने जब देखा तो अहसास हँसी आ गई और मुख से निकल पड़ा- अन्धे की औलाद अन्धी होती है। जब यह व्यंग्य दुर्योधन के कानों से टकराया तो आगबबूला हो गया।

प्रतिशोध की ज्वाला भडक़ उठी और कहा, हे द्रोपदी तुमने मेरा बड़ा भरी अपमान किया है। एक दिन मैं तुम्हें दिखा दूंगा कि अन्धों की सन्तान कैसी होती है? महाभारत का युद्ध होने के अनेको कारण हैं, लेकिन मुख्य कारण बन गया- द्रौपदी का कटू वचन। इसीलिए धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, कटुवचन कभी मत बोले- सत्यं ब्रूहि, प्रिंय ब्रूहि कटू सत्य कभी मत बोलो, सत्य भी प्रिय बोलो।

अन्धे को अन्धा कहना कटू सत्य है, सुरदासजी कहना प्रिय सत्य है। तलवार या शास्त्र के वार से जो घाव शरीर पर होता है वह तो उपचार करने से कुछ समय बाद ठीक हो जाता है, परन्तु जिह्वा द्वारा कटू शब्द जो दिल में घाव कर देता है, वह जीवन पर्यन्त मानव को सालता रहता है।

देखने में दोनों कोयल और कौआ काले हैं, लेकिन जब बोलते हैं तो साफ समझ में आ जाता हैं, कोयल की वाणी सबको मधुर लगती है और कौआ जब बोलता है तो सबको कर्कश वाणी लगती है। इसी प्रकार जो मानव मधुर बोलता है, सबको प्रिय लगता है। कर्कश वाणी बोलने को कोई अपने साथ रखना नहीं चाहता।

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