धर्म

ओशो :औषधि जैसा है संन्यास

एक आदमी बीमार है और चिकित्सक उसे कहता है, यह औषधि लो और व्यायाम करो। तो औषधि संन्यास है और व्यायाम योग है। औषधि बीमारी काटेगी, स्वास्थ्य नहीं दे सकती। औषधि निषेधात्मक है। बीमारी को काटेगी, बीमारी हटायेगी। व्यायाम विधायक है, स्वास्थ्य को जन्माएगा। और ये दोनों एक ही प्रक्रिया के हिस्से है। शायद अकेला व्यायाम कारगर न हो। अगर बीमारी बैठी हो, तो यह भी हो सकता है कि व्यायाम बीमारी का व्यायाम बन जाए और बीमारी और मजबूत हो जाए। या व्यायाम शरीर को और क्षीण कर दे, और बीमारी की शक्ति और बढ़ जाए। अकेली औषधि भी काफी न होगी क्योंकि औषधि केवल बीमाी को काट देगी, लेकिन विधयाक स्वास्थ्य तो जीविंत श्रम से पैदा होगा। स्वास्थ्य तो स्वयं पैदा करना पड़ेगा। औषधि केवल उस चीज को हटा देगी, जिससे स्वास्थ्य के पैदा करने में पड़ती थी। औषधि जैसा है संन्यास। और व्यायाम जैसा है योग। जो गलत है, उसे छोड़ो और जो सही है, उसे करने में लगो। और तभी अंत:करण शुद्ध होगा।
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आमतौर से योग में लगे हुए लोग सोचते हैं- योग प्रर्याप्त हैं, संन्यास की काई जरूरत नहीं। और ऐसी ही दुर्घटना तब दुबारा भी घटती है कि संन्यास -काफी है, योग की क्या जरूरत रही। छोड़ दिया सब जो गलत था । संसार छोड़ दिया, सब त्याग दिया अब और क्या पाने को रहा। जैसे त्याग ही प्रर्याप्त है। त्याग तो केवल उस जगह को खाली करना, जहां गलत बैठा था। उस सिहांसन से हमने गलत को हटा दिया, लेकिन अभी सही को निमंत्रण भी देना पड़ेगा। अभी उस राजा को भी बुलाना पड़ेगा, आमंत्रण भेजना पड़ेगा, जो उसका मालिक है और उस सिहांसन पर होना चाहिए। योग के बिना न हो पाएगा।
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बहुत बार हमारे मुल्क में भी , इस मुल्क के बाहर भी यह घटी है। जिन – जिन धार्मो ने सन्सांस पर जोर दिया, उन उन धर्मो में योग धीरे-धीरे खो गया। जैसे जैन-धर्म। महावीर महायोगी हैं, लेकिन जैन -धर्म का अधिकतम जोर त्याग पर रहा, तो आज जैन साधु योग से बिलकुल अपरिचित हैं। जैन साधु को योग से कोई संबंध नहीं रहा। योग से ध्यान से, विधायक अभ्यास से उसके संबंध में टूट गये, क्योंकि सोचा कि त्याग काफी है। गलत खाता नहीं, गलत सोता नहीं, गलत बोलता नहीं, कुछ गलत करता नहीं हूं, तो गलत बिलकुल छोड़ दिया तो ख्याल में भा्रंति आती है कि सही हो गया। गलत छोड़ देने से सही नहीं हो जाता। गलत छोड़ देने से सही के होने की संभावना भर पैदा होती है। सही को भी जन्माना पड़ता है। सही को विधायक चेष्टा से जन्माना पड़ता है।
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