धर्म

स्वामी राजदास : साधना

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मनुष्य के साथ परमपुरुष का जो संपर्क है, इसमें उन्हें कुछ कहकर तो बुलाना पड़ेगा। उन्हें बुलाने का जो माध्यम है, वह है इष्ट मंत्र। इष्ट मंत्र बहुत सरल, सीधा, सहज भाषा में होना चाहिए। कारण उसी से तो उन्हें बुलाया जा सकता है। परमपुरुष की सबके साथ आत्मीयता है। वह तो बिल्कुल घर के हैं, किंतु उन्हें बुलाने का कोई शब्द तो होना चाहिए। प्रत्येक कार्य करते समय हमें याद रहे कि उनकी दोनों आंखें हमें देख रही हैं। इसे याद न करने पर इष्ट मंत्र को व्यवहार करने की सुविधा नहीं रह जाती। उस समय किस शब्द का हम व्यवहार करते हैं – बाप रे! यही तो हुआ गुरुमंत्र। अरे बाप रे! दो आंखें मुझे देख रही हैं, मुझे छोड़ेंगी नहीं। प्रार्थना मनुष्य कब करता है? जब वह भ्रांतिग्रस्त होता है और बड़ी भूल कर डालता है। कारण प्रार्थना के आरंभ में भी भूल है, मध्य में भी भूल है और अंत में भी भूल है।
साधना शब्द संस्कृत के ‘साध्’ धातु से आया है। अर्थात तुम्हारा एक लक्ष्य है और उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए तुम चेष्टा कर रहे हो। तुम्हारा जो लक्ष्य है – संस्कृत में उसे कहते हैं साध्य और लक्ष्य तक पहुंचने का जो प्रयास होता है, वह है साधना। जैसे तुम कोलकाता से वर्धमान जाओगे, इस क्षेत्र में वर्धमान तुम्हारा साध्य हो गया और वर्धमान जाने के लिए ट्रेन, बस या पैदल यात्रा कर सकते हो। ये प्रयास हैं साधना। अब देखो परमपुरुष जीव के लक्ष्य हैं, तो परमपुरुष जीव के साध्य हुए। उन तक पहुंचने का जो प्रयास है, वह हुई साधना। मान लो कोई गायक गाते-गाते उच्च स्तर पर पहुंच गया। यदि वह बाजा बजाता है तो उसके हाथ और यदि गाता है तो उसके गले का रियाज साधना हुई। इसीलिए कहा गया है, किसी लक्ष्य या साध्य तक पहुंचने की चेष्टा साधना है। आध्यात्मिक साधना क्या है? वह जो परमपुरुष है, जो मनुष्य के लक्ष्य और साध्य हैं, उन तक पहुंचने का प्रयास आध्यात्मिक साधना है। इसलिए साधना तो सभी मनुष्यों को सभी क्षेत्रों में करनी ही होगी। पत्रकारिकता के क्षेत्र में है तो जीवन आधार न्यूज पोर्टल के साथ जुड़े और 72 हजार रुपए से लेकर 3 लाख रुपए वार्षिक पैकेज के साथ अन्य बेहतरीन स्कीम का लाभ उठाए..अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
परमपुरुष हमारे ध्येय हैं, हम परमपुरुष के पास पहुंचने की चेष्टा कर रहे हैं, अर्थात साधना कर रहे हैं। परमपुरुष का और एक नाम है, लीलामय। वह जगत को अपनी लीला दिखाता है। यह तो तुमलोग जानते ही हो। परमपुरुष को लीला करना, खेलना-खिलाना बहुत अच्छा लगता। इसलिए तुम जो चाह रहे हो वह तो देंगे, किंतु थोड़ा खेल-खेलाकर, थोड़ा घुमा-फिराकर। अवश्य ही आंतरिक रूप से तुम जो चाहते हो ठीक वही पाओगे, किंतु तुम्हें लेकर थोड़ा खेलाएंगे। कारण यह है कि यदि तुम्हें खेल न खेलाएंगे तो पृथ्वी रहेगी कैसे? मनुष्य यदि दौड़ा न करे, हाय क्या होगा, क्या होगा न करे तो पृथ्वी रहेगी कैसे? यह जो क्या होगा, क्या होगा, इसके बाद क्या होगा, आगे क्या होगा, यही तो पृथ्वी का माधुर्य है।
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Jeewan Aadhar Editor Desk