धर्म

ओशो : का सोवै दिन रैन

एक नेता भूल से मेरे पास आ गए। आया आशीर्वाद लेने के लिए कि चुनाव में खड़ा हो गया हूं, आपका आशीर्वाद चाहिए। तो मैंने कहा,मेरा आशीर्वाद है कि निश्चित हार जाओ। क्योंकि जो जीत गए वे भटक जाते हैं। हरोगे तो शायद परमात्मा की याद। जीत तो दिल्ली में डूब मरोगे, राजघाट पर पड़ोगे जल्दी ही देर-अबेर। हार जाओ तो दिल्ली से बच जाओ। और ज्ञानी कह गए है हारे का हरिनाम।
वे तो बहुत घबड़ा गए। वे कहने लगे कि आप कैसी अपशकुन की बातें कह रहे है। उनको तो पसीना आ गया। उन्होंने कहा ऐस मत कहिए, नहीं-नहीं ऐसा मत कहिए। आप क्या मजाक कर रहे हैं?
उनको घबड़ाहट हुई कि यह मैं कहां आ गया। केई तो कहता नहीं किसी से कि तुम हार ही जाओ। यह मैंने कहा अब आ ही गए तो मैं तो आशीर्वाद दूंगा ही। तुमने मांगा तो मैं दूंगा। मैं वही आशीर्वाद दे सकता हूं जो सच में आशीर्वाद हैद्ध चुनाव में जीत कर करोगे क्या? गालियां खाओगे? चुनाव में जीत कर क्या करोगे? अंहकार को थोड़ा और मजा आ जाएगा। जितना अंहकार को मजा उतना परमात्मा से दूर पड़ जाओगे। तुम अभिशाप मांग रहे हो मुझसे? लेकिन वे कहने लगे मै और गुरूओं के पास आ गया, वे तो सब आशीर्वाद देते हैं। तो मैंने कहा:फिर वे गुरू न होंगे। तो तुम उन्हीं के पास जाओ। स्कूली प्रतियोगिता.. प्ले ग्रुप से दसवीं तक विद्यार्थी और स्कूल दोनों जीतेंगे सैंकड़ों उपहार.. अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे
सद्गुरू के पास घबड़ाहट होगी तुम्हें, क्योंकि वह तुम्हारी आकांक्षाएं पूरी करने को नहीं है। तुम्हारी समझ ही कितनी है? तुम्हारी आकांक्षा कितनी है? उसे कुछ और विवाद दिखाई पड़ रहा है जिसकी तुम्हें खबर भी नहीं है। तुम कंकड़-पत्थर मांगने गए हो, उसे हीरों की खदानें दिखाई पड़ रही है जो तुम्हारे पीछे पड़ी है। वह तुमसे कहता है:छोड़ो कंकड़-पत्थर। जितनी जल्दी हार जाओ कंकड़ो-पत्थरों से उतना बेहतर है। हारो तो नजर पीछे जाए। यहां से चुको तो थोड़ी सुविधा बने, अवसन बने तुम उसको देख सको, जो तुम्हारे भीतर पड़ा हैं। बाहर से बिल्कुल टूट जाओ, बाहर कुछ भी उपाय न रहे, सब तरह से हताश हो जाओ, तभी भीतर जाओगे। हीरे को हरिनामा। जीता तो अकड़ में होता है। जीवन आधार न्यूज पोर्टल को आवश्यकता है पत्रकारों की…यहां क्लिक करे और पूरी जानकारी ले..
तुमने देखा नहीं? सफल होता है आदमी ,ईश्वर को भूल जाता है। सुख में आदमी ईश्वर को भूल जात है, दुख में याद करता है।
तो सद्गुरू तो वह है जो तुमसे कहे कि दुखी हो जाओ, और दुखी हो जाओ। अभी और दुख चाहिए।
सद्गुरू तो वह है जो और तीर भोंक देगा तुम्हारी छाती में कि उसकी पीड़ा ही तुम्हें जगा दे।
धर्म तो नारद ही हो सकता है, लेकिन नगद धर्म पाने के लिए कीमत चुकानी पड़ती है। इसलिए उसको नगद धर्म कहते हैं।
फिर,नगद धर्म का एक और अर्थ होता है, जो अभी मिल सकता हो, इसी क्षण मिल सकता हो, जिसके लिए कल की प्रतीक्षा न करनी पड़े।
परमात्मा ऐसा थोड़े ही है कि कल मिलेगा। आंख खोलो तो अभी मिल जाए। आंख खोल तो अभी है। तुम कहते हों नहीं, नहीं अभी नहीं। अभी तो मुझे और हजार काम है। अभी परमात्मा मिल गया तो मैं और अपने हजार काम कैसे करूंगा? नहीं अभी नहीं। इतना आशीर्वाद दें कि जब मुझे जरूरत हो तब मिल जाए। नौकरी करना चाहते है, तो यहां क्लिक करे।
तुम पहले तो धर्म लेते हो अतीत से उधार और परमात्मा को सरकाते हो भविष्य में। तुम्हारे मन की तरकीब को ठीक से समझ लेना। और वर्तमान को तुम बचा लेते हो संसार के लिए। इसलिए धर्म तुम लेते हो बुद्ध से, महावीर से, कृष्ण से, क्राइस्ट से। तब तुम धर्म ले रहे थे वेद से, उपनिषद से। और जब वेदों के ऋषि जिंदा थे तब धर्म लेते हो, क्योंकि मर्दा गुरू का धर्म ले रहे थे। तुम्हारा बड़ा मजा है। तुम हमेशा मूर्दा गुरू धर्म लेते हो, क्योंकि मूर्दा गुरू का धर्म तुम्हें जरा भी अड़चन नहीं देता। कांअे नहीं चुभते उससे, फूलों की सेज मिल जाता है। सांत्वना मिलती है, सत्य नहीं मिलता। और तुम सत्य चाहते नहीं, तुम सांत्वना चाहते हो।
फ्रेडिरिक नीत्से ने लिखा है कि लोग सत्य चाहते ही नहीं। लिखा है उसने कि जब भी मैंने लोगों से सत्य कहा, लोगों ने गालियां दीं। और जब भी मैंने असत्य कहा, लोग बड़े प्रसन्न हुए, मुस्कुराए और धन्यवाद दिया। लोग सत्य चाहते ही नहीं। सत्य लोगों को देना ही मत, अथवा वेे तुम्हें कभी क्षमा न करेंगे।
बात सच मालूम होती है, नहीं तरे जीसस को सूली पर क्यों लटकाया? लोग क्षमा नहीं कर सके। सुकरात को जहर क्यों दिया? लोग क्षमा नहीं कर सके । लोग सत्य चाहते नहीं।
सुकरात पर जुर्म क्या था? आदलत में मुकदमा चला। जुर्म क्या था? जर्मों की लम्बी फेहरिस्त थी, उसमें बहुत महत्वपूर्ण जुर्म जो था, नंबर एक का जुर्म जेा था, यह वह था कि सुकरात जबर्दस्ती लोगों को समझाता है कि सत्य क्या है। कोई आदमी अपने काम से निकला है, रास्ते पर मिल जाता है, सुकरात उसका हाथ पकड़ लेता है। और ऐसे प्रश्र उठाने लगता है जो कि वह आदमी कहता है, अभी मुझे उठाने नहीं हैं। अभी मैं दूसरे काम से जा रहा हूं। अभी मैं बाजार जा रहा हूं। अभी नौकरी करनी है। अभी धंधा करना है। सुकरात ने लोगों को इस तरह परेशान कर दिया। रास्तों पर पकड़-पकड़ कर। चलते आदमी सुकरात को देख कर, कहते हैं, गालियां से भाग निकलते थे। आसपास के दरवाजों में घुस जाते थे दूसरों के मकानों में, कि सुकरात कहीं कोई बात न छेड़ दे। क्योंकि उसकी हर बात तीखी है।
अदालत ने सुकरात से कहा था, हम तुम्हें क्षमा कर सकते हैं, अगर तुम सत्य का उपदेश देना बन्द कर दो। तुम बच सकते हो। तुम्हरा जीवन बच सकता है। तुम्हारा जीवन बच सकता है। लेकिन तुम यह सत्य की बात बन्द कर दो। जब लोग चाहते ही नहीं है तो तुम क्यों ये बाते कर रहे हों? अगर तुम श्विवास दिला दो अदालत को कि अब तुम चुप रहोगे और सत्य की बात नहीं बोलोगे तो तुम्हारा जीवन बच सकता हैं, अन्यथा मृत्यु सुनिश्चित है।
सुकरात हंसा और उसने कहा: फिर मैं जी कर ही क्या करूंगा? सत्य आए जगत में , यही तो मेरे जीवन का प्रयोजन है। सत्य ही तो मेरा धंधा हैं। जिऊंगा तो सतय का काम जारी रहेगा। इसलिए वह वचन मैं नहीं दे सकता हूं।
तुमने कभी वर्तमान के बुद्धों को क्षमा नहीं किया है। हां, जब बुद्ध जा चुके होते हैं तब उनकी किताब पर तुम फूल चढ़ाते हो। सुविधापूर्ण है।
किताब तुम्हें जगा नहीं सकती। सच तो यह है कि ताब अच्छा तकिया बन जाता है, उस पर तुम गहरी नींद सोते हो।
सद्गुरू का तुम तकिया नहीं बना सकते। सद्गुरू आग है। अंगारों से तकिए नहीं बनते। अंगारें जलाती है, बुरी तरह जलाती है। लेकिन उसी जलने में ही तो तुम्हारा निखार छिपा है। उसी मृत्यु से तो तुम्हारा पुनज्जीवन है।
नीत्से ठीक कहता है कि लोग सत्य नहीं चाहते। नीत्से ने यह भी कहा है कि लोगों को अगर तुम मिल जाए तो उसे जल्दी झूठ कर लेतें हैं। वह भी ठीक हैं। उसकी लीप- पोत लेते हैं। उसको इधर-उधर से काट- छांट लेते हैं। उसके कोने मार देते हैं। उसको गोलाई दे देते हैं। उसको इस तरह की शब्दावली में, इस तरह के सिद्धांत- जाल में रच देते हैं कि उसकी प्रखरता चली जाती है, उसकी चोट चली जाती है। फिर वह घाव नहीं बन पाता। फिर वह मलहम हो जाता है। छुरी, जो तुम्हारे प्राणों करा छेद देती है, भाला जो तुम्हारे प्राणों के आर-पार उत्तर जाता है- वह मलहम बना लेते हैं। लोग झूठ चाहते हैं। झूठ बड़ा प्यारा है।
तुम झुठ में ही जीते हो। कोई तुमसे कह देता है कि मैं तुम्हें प्रेम करता हूं और तुम प्रफुल्लित हो जाते हो। कोई तुमसे कभी यह सोचा ही नहीं कि तुम में प्रेम करने योग्य है क्या, जो कोई तुम्हें प्रेम करेगा। तुम्हें अगर कोई याद दिलाए कि तुम मैं प्रेम करने योग्य कुछ है ही नहीं, भाई मेरे तुम्हें कोई प्रेम करेगा कैसे? तो तुम नाराज हो जाओगे। उसने तुम्हारा सत्य छू लिया। उसने तुम्हारी रग छू ली। उसने तुम्हारा दर्द छेड़ दिया। तुम मलहमपट्टी चाहते हो। तुम चाहते हो लोग तुम्हें प्यारे हो , बड़े भोले हो। और तुम जानते हो कि ऐसे तुम नहीं हो। जानते हो, इसलिए इसको छिपाना चाहते हो। तुम उन्हीं लोगों का आदर करते हो, जो तुम्हारे मन को किसी न किसी रूप में सांत्वना दिए चले जाते हैं।
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Jeewan Aadhar Editor Desk