एक कहानी सुनी है मैंने । एक चोर किसी के घर में घुसा। कुछ खास तो वहां था नहीं। मगर जो भी कूड़ा-कबाड़ था, अब आ ही गया था, रात खराब गई, चलो जो हैं चलें। वह उसी का बांध-बूंध कर लने लगा। जब वह चलने लगा तो आधे रास्ते में उसने पाया कि कोई पीछे चला आ रहा है। उसने लौटकर देखा, वही आदमी है जिसके घर से वह सामान ले आया है।
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उसने पूछा कि भाई तुम किसलिए आ रहे हो? उसने कहा कि घर हम बदलना चाहते थे पहले से। हम भी वहीं रहेंगे जहां तुम रहते हो। सामान तो तुम ले ही आये हो, हम को कहां छोड़ के जाते हो?
ये सुनते ही चोर ड़र गया…समान छोड़कर भाग खड़ा हुआ। चोर ने ये नहीं सोचा कि तुम्हारे पास है क्या? तुम इतने घबड़ाए किसलिए हो? स्कूली प्रतियोगिता.. प्ले ग्रुप से दसवीं तक विद्यार्थी और स्कूल दोनों जीतेंगे सैंकड़ों उपहार.. अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे
लेकिन लोग बड़े डरे हुए हैं कि कहीं कुछ छिन न जाए, कहीं कुछ खो न जाए। जिनके पास कुछ नहीं है, उनका डर की कहीं कुछ खो न जाए, सिर्फ एक मान्यता है यह अपने को समझाए रखने की कि हमारे पास कुछ है। जरा खोलकर तो देखो पाटली, सिवाय दुखों के और कुछ भी नहीं है।जीवन आधार न्यूज पोर्टल को आवश्यकता है पत्रकारों की…यहां क्लिक करे और पूरी जानकारी ले..
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी,गुरू अगर कुछ छीन भी लेगा तो दुख ही छीन सकता है। गुरू के पास रहा, उठो-बैठो। उस हवा में थोड़ा जियो, श्वास लो, तो तुम्हारे दुखों का एक उपयोग हो जाएगा। वह उपयोग यह है कि दुखों के माध्यम से चेहरे को निखारा जा सकता है। तुम्हारें आंसुओं का उपयोग भी हो जाएगा, क्योंकि आंसुओं के माध्यम से तुम्हारी आंखों को नहलाया जा सकता है। गुरू के पास यही तो कीमिया है कि तुम्हारे पास जो कूड़ा—करकट है उसका भी उपयोग सिखा दे, उसमें से भी सार्थक निमार्ण कर दे।
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