धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—53

एक बार प्रयागराज में देव, ऋषि, मुनि, सन्त-महात्मा सभी एकत्रित हुए। जब थोड़ा अनुष्ठान होता है तो एक को बड़ा प्रधान बनाया जाता है। सबसे विचार किया और अध्यक्ष के स्थान पर शिवाजी को चुना गया। सब भगवान् शिव के पास आए और कहने लगे, महादेव इस अनुष्ठान में आप प्रधान बन जाओ। शिवाजी ने कहा, आप किसी और को चुन लिजिए। क्योंकि मैं किसी की चापलुसी नहीं कर सकता, मेरी तो समाधि लग जाती है तो महीनों तक मुझे पता नहीं चलता कि हो क्या रहा है? सबने फिर आग्रह किया तो भगवान् शिव ने सबकी विनती स्वीकार की और अध्यक्ष पद बैठ पर गए। दस-पन्द्रह मिनट के बाद समाधि लग गई।

परमात्मा के ध्यान में लीन हो गए। सभा में कौन आया, कौन गया, कुछ भी पता नहीं रहा। कुछ समय के पश्चात् दक्ष प्रजापति आए, सभी ने खड़े होकर स्वागत किया, परन्तु शिवाजी ध्यान में होने के कारण खड़े नहीं हुए। दक्ष ने अपना अपमान किया और क्रोध में आकर शिवाजी को गाली देना आरम्भ कर दिया, पाखण्डी, ढोंगी , बगुलाभक्त, कपटी। इस शमशान में रहने वाले को गद्दी पर किसने बैठा दिया। यह तो साँपो की माला पहनने वाला है इसको फूलों की माला किसने पहनाई? भस्म लगवानेवाले को चन्दन किसने लगाया?

शिव के भक्तों से ऐसे कटु शब्द नहीं सुने गए और क्रोधित होकर बोले, यह शिव निन्दक है, इसका यहाँ रहना ठीक नहीं ? हल्ला सुनकर शिवजी का ध्यान टूट गया, आँखे खुली और पूछा क्या हुआ? सब ने कहा दक्ष प्रजापति ने आपका अपमान किया है, आपको गाली दी है, उसने कहा शिव तो शमशान में बैठने के लायक है। सुनकर शिव हँसने लगे, यह मेरी निन्दा नहीं , सच्चाई है। मैं शमशान में ही रहता हूँ। एक दिन तो सबको मेरे पास आना ही है। श्मशान का अर्थ है- जहां सबकी शान एक समान हो उसे कहते हैं श्मशान वहां राजा, रंक में, लखपति, खाकपति में कोई भेद नहीं। श्मशान को हमेशा याद रखो भगवान् को कभी मत भूलो।

एक तो मृत्यु कसे हमेशा सिर पर मंडराते हुए देखो और दूसरे परमात्मा को जिसने तुम्हें इा क्षणंभगुर संसार में कुछ समय के लिए भेजा है, वह सर्वव्यापक है, यह जानकर कोई भी छुपकर पाप मत करो। वह अन्तर्यामी है, घट-घट वासी है।

परमात्मा से कुछ भी छिपा नहीं है और शरीर रूपीपंतग की डोर उसके ही हााि में है, न जाने कब अपना बुलावा भेज दे?

शिवजी कह रहे है कि शमशान में इसीलिए रहता हूं कि सबको याद रहे कि एक दिन हमें भी शिव के पास शमशान में जाना है। मैं चन्दन नहीं, भस्म लगाता हूं केवल यह शिक्षा देने के लिए, अरे क्रीम पाउडर लगाकर शरीर को सजानेवालो याद रखो , एक दिन शरीर जलकर भस्म हो जाएगा, एक मुठ्ठी राख बना जायेगा अत: जितना कर सको परमात्मा का नाम-सुमिरण करो वही साथ जायेगा। साप की माला पहनता हूं केवल यही याद दिलाने के लिए कि हे मानव कालरूपी सर्प सबके गले में पड़ा हुआ है, किसको कब और कहाँ निगल जाए कोई पता नहीं। इसलिए श्वांस श्वांस में परमात्मा और मौत को याद रखो।

इस प्रकार भगवान शिव हँसते हुए चल पड़े। जो बुराई में भी अच्छाई खोज निकाले उसी का नाम है शिव। जैसे धरतीमाता है, इसमें सभी प्रकार के बीज बोए जाते हैं। यदि नीबू का बीज डालेंगे, तो उसमें खट्टापन स्वत: आ जायेगा। यदि गन्ना होगा, तो मिठास आ जायेगा और नीम का बीज होगा तो कड़वापन आ जायेगा। जमीन एक है, परन्तु सभी में अपना अपना गुण आ जाता है। इसी प्रकार दूसरों के अवगुण मत देखो उनमें से गुण ग्रहण कर लो और अपने गुण सुरक्षित रखो। सब में गुण देखने की प्रकृति बनाओ। मान-अपमान में सम रहो। मान में फूलों मत और अपमान में मुरझाओ मत। शिव को हँसते देख दक्ष को और गुस्सा आया।

दक्ष प्रजापति ने हरिद्वार में कनखल नामक स्थान पर एक बहुत बड़ा यज्ञ रचाया। सबको आमन्त्रण भेजा, परन्तु शिव को और सती को नहीं बुलाया। देवता-गण विमान में बैठे हुए कैलाश पर्वत के ऊपर से जा रहे थे, पार्वती ने पूछा भगवन् ये सब कहाँ जा रहे है? भगवान ने कहा तुम्हारे पिताजी ने यज्ञ में बुलाया है वहीं जा रहे होंगे। समी ने कहाँ भगवान् क्या हम वहां नहीं जायेगें? नहीं बिना बुलाए कैसे जायेंगे? सती ने कहा भगवन् आप नहीं जाना चाहते, तो कोई बात नहीं, मुझे जाने की आज्ञा दें, पिता का घर, मेरा भी घर है। भगवान् शिव ने बहुत समझाया कि बना बुलाए किसी भी प्रियजन के नहीं जाना चाहिए। इससे अपमान ही होता है, तुम माननि हो, अपमान तुम से सहन नहीं होगा, कोई न कोई अनथ्र हो जाएगा।

इतना कहकर भगवान मौन हो गए। उन्होंने देखा कि दक्ष के यहाँ जाने देने अथवा न जाने देने – दोनों ही अवस्थाओं में सती के प्राणत्याग की संभावना है। इधर जी भी कभी बन्धुजनों को देखने जाने की इच्छा से बाहर आती और कभी भगवान् शंकर रूष्ट न हो जाएं इस शंका से फिर अंदर आ जाती। इस प्रकार कोई एक बात निश्चित न कर सकने का कारण दुविधा में पड़ गई। भगवान् शंकर ने बहुत समझाया, परन्तु सती नहीं मानी तो शिवजी ने अपने चार पाँच विशवसनीय सेवकों को साथ भेज दिया। सती विचार करती हुई जा रही है कि जाकर पिताजी से कहूँगी कि मैं तो बिना बुलाए आ गई हूं, लेकिन शिवजी नहीं आयेंगे, तो पिताजी उनको बुलाने के लिए किसी को भेज देंगे और इस प्रकार दोनों के बीच जो मन- मुटाव है वह दूर हो जायेगा। इस प्रका कल्पना करती हुई यज्ञशाला में पहुंच गई, जाकर देखा सब देवताओं के आसन लगे हुए हैं, परन्तु शिव का कोई आसन नहीं लगाया गया, क्रोध तो आया, परन्तु चुप रही, आगे गई, तो सबने सती का प्रणाम किया, परन्तु दक्ष ने कहा उस ढांगी, पाखण्डी को कहां छोड़ आई हो? ऐसे कटु वचन सुनकर सती का धैर्य-बांध टूट गया। और कहने लगी आप भगवान नीलकण्ठ की निन्दा करने वाले हैं, इसलिए मैं आपसे उत्पन्न हुए इस शरीर को अब मैं नहीं रख सकती। यदि भूल से कोई निन्दित वस्तु खा ली जाय, तो उसे वमन करके निकाल देने से मनुष्य की शुद्धि बताई जाती है। अत:पिता जी आपने मेरे पति के बारे में ऐसे कटु शब्द कहे हैं, आप पापी हो और मेरा शरीर भ्ज्ञी आपसे बना है इससे मैंने अपने पति की निन्दा सुनी है। इसलिए यह भी पापमय हो गया है। ऐसा कहकर हवन-कुण्ड़ में छलांग लगा दी और उसने आत्म दाह कर लिया। कैलास में जाकर नारद जी ने सती दाह की बात भगवान् शिवजी को कही। शिव ने वीरभद्र को भेजा। वीरभद्र ने यज्ञ का विध्वंस कर डाला। दक्ष का मार गिराया। सभी देवता शिव के पास आए और शिव से प्रार्थना की।

प्रिय सज्जनों जहाँ गुरू, माता-पिता और पति की निन्दा हासे रही हो , वहां पर खड़े नहीं रहना चाहिए, क्योंकि निन्दा सुनकर क्रोध तो आयेगा ही, उसका परिणाम अच्छा नहीं होगा, अत: उस स्थान से चले जाना श्रेयस्कर है या उनको प्यार से समझाना श्रेष्ठ है।

शिवजी उनकी प्रार्थना से प्रसन्न हो गए और दक्ष के धड़ पर,बकरे का सिर काटकर, दक्ष के सिर के स्थान पर लगा दिया। यज्ञ की पूर्णाहुति हुई। सती के शरीर को लेकर ताण्ड़व नृत्य शुरू हुआ और भगवान् विष्णु का सुदर्शन चक्र चला और एक अंग कटने शुरू हो गए। जहाँ जहाँ पर सती के अंग गिरे, वहाँ वहाँ पर देवी की स्थापना हुई। एक जगह नैन गिरे नैना देवी की स्थापना हुई, कलकते में काली देवी की स्थापना हुई,तथा गोहाटी में कामाख्या देवी की, इस प्रकार सती ने अपने पति के लिए अपने आप को अर्पित कर दिया, तो परमात्मा ने उसके अंग अंग की पूजा हेतु देवियों की स्थापना की।

शिक्षा- तुलसीदास जी कहते हैं कि चाहे कंचन की बरसात हो रही हो, परन्तु यदि अदर सत्कार नहीं है, तो उस घर में मत जाओ। बिना बुलाए चाहे पीहर ही जाना हो, मत जाओ अन्यथा सती की तरह पश्चात्ताप और अनर्थ ही होगा।

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