धर्म

ओशो : जिसे चाहो वह ठुकराता क्यों है?

मुल्ला नसरुद्दीन से उसके मित्र चंदूलाल ने पूछा मुल्ला, अगर तुम शादी ही करना चाहते हो तो उसी लड़की से क्यों नहीं कर लेते जिसके साथ रोज शाम को सागर की सैर करने जाते हो? मुल्ला ने कहा—अगर मैं उसी से शादी कर लूंगा, तब मेरी शामे कैसे कटेगी?
जिससे शादी की, उससे झंझट हो जाती है;उससे सब प्रेम का नाता टूट जाता है, यह बड़े मजे की बात है। प्रेम का नाता जिससे बनाया, विवाह किया, शादी की वह प्रेम का नाता है मगर जिससे विवाह किया, उससे प्रेम का नाता टूट जाता है।
यह बड़ी अजीब दुनिया है। यह बड़ी चमत्कार से भरी दुनिया है। प्रेम का नाता बनाते ही प्रेम टूट जाता है। क्योंकि प्रेम के नाम पर जो सब सांप बिच्छू छिपे बैठे थे अभी तक पिटारे में, सब निकलना शुरू हो जाते है। इधर विवाह की बासुरी बजी कि उधर निकले सब सांप बिच्छू। वे सब जो छिपे पड़े थे, कहते थे बच्चू जरा रुको, जरा ठहरो, ठीक समय आने दो, एक बार गठबंधन हो जाने दो, एक बार छूटना मुश्किल हो जाए, फिर असलियत प्रकट होती है। तुम्हारा भी सब रोग बाहर आता है, जिससे तुमने प्रेम किया उसका भी सब रोग बाहर आता है, धीर धीरे पति-पत्नी पत्नी के बीच सिवाय रोग के आदान-प्रदान प्रदान के और कुछ भी नहीं होता।
मुल्ला नसरुद्दीन से किसीने पूछा—प्रेम के विषय में आपका क्या अनुभव है? मुल्ला ने कहा—यही, दो बार निराशा। पहली बार इसलिए कि एक स्त्री ने न कहा, और दूसरी बार इसलिए कि दूसरी स्त्री ने हा कहा। हर हालत मे निराशा है। स्त्री मिल जाए तो निराशा, स्त्री न मिले तो निराशा। पुरुष मिल जाए तो निराशा, न मिले तो निराशा।
मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी उससे कह रही थी—मैं अपने नए पड़ोसियो से तंग आ चुकी हूं;हमेशा आपस में लड़ाई झगड़ा करते रहते हैं। मुल्ला ने कहा एक समय ऐसा भी था जब ये दोनों एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे। पत्नी ने पूछा फिर क्या हुआ? मुल्ला ने कहा फिर, फिर दोनों की शादी हो गयी।
और मुल्ला से किसी ने पूछा तुमने कैसे उस औरत से विवाह करने का निश्चय कर लिया है? वह सुंदर हो सही, मगर तुम्हें पता है नसरुद्दीन, उसके पिछले पांचों पति पागलखाने में हैं! मुल्ला ने कहा छोड़ो, मुझे डरवाने से रहे, शायद तुम्हें भी पता नहीं है कि बंदा पागलखाने से लौट चुका है। अब मुझे कोई पागलखाना भेज नहीं सकता।s
अब तुम पूछते हो जिसे चाहो वह ठुकराता क्यों है? पागलखाने न जाना चाहता होगा। अनुभव जीवन का आदमी को डरा देता है। बुद्धिमान होगा, जो तुम्हें ठुकरा देता है। तुम अपने प्रेम को परखो, फिर से देखो। तुम्हारे प्रेम में कुछ गलत छिपा है। तुम्हारे प्रेम के वस्त्रों में जंजीरें है। प्रेम का आवरण है, भीतर कुछ और है। तुम किसी के मालिक होना चाहते हो? तुम किसी पर कब्जा करना चाहते हो? तुम किसी को वस्तु की तरह उपयोग करना चाहते हो? कोई नहीं चाहता कि उसका उपयोग किया जाए। क्योंकि जब भी किसी का, उपयोग किया जाता है, उसका अपमान होता है। कोई नहीं चाहता कि कोई उसका मालिक हो;क्योंकि जब भी कोई किसी का मालिक हो बैठता है, तब उस व्यक्ति को अपनी आत्मा को खोना पड़ता है। कोई नहीं चाहता कि परतंत्र हो—प्रेम तो लोग चाहते हैं लेकिन परतंत्रता नहीं चाहते हैं, और तुम्हारे सब प्रेम में परतंत्रता छिपी हुई है। वह अनिवार्य शर्त है। वह ऐसी शर्त है कि लोग डरने लगे हैं, लोग भयभीत होने लगे हैं, लोग घबड़ाने लगे हैं।
तुम अपने प्रेम को शुद्ध करो। तुम उसे प्रार्थना बनाओ। तुम दो और मांगने की इच्छा मत करो। और तुम जिसे दो, उस पर कब्जा न करो। और तुम जिसे दो, उस से अपेक्षा धन्यवाद की भी मत करो। उतनी अपेक्षा भी सौदा है। और तुम दो क्योंकि तुम्हारे पास है। और मैं तुम से कहता हूं कि तुम अगर दोगे, तो हजार गुना तुम्हारे पास आएगाः मगर मागो मत। भिखमंगों के पास नहीं आता है, सम्राटों के पास आता है। जो मागते हैं उनके पास नहीं आता। तुम मांगो ही मत। एक बार यह भी तो प्रयोग करके देखो कि तुम चाहो और दो, मगर मांगो मत। नेकी कर और कुएं में डाल। पीछे लौटकर ही मत देखो, धन्यवाद की भी प्रतीक्षा मत करो। और तुम पाओगे, कितने लोग तुम्हारे निकट आते हैं! कितने लोग तुम्हारे प्रेम के लिए आतुर हैं! कितने लोग तुम्हारे पास बैठना चाहते है! कितने लोग तुम्हारी मौजूदगी से अनुगृहीत हैं!

Related posts

अब नहीं बजेगी लंबे समय तक शहनाई, 1 जुलाई से आरंभ होंगे चातुर्मास, 24 नवंबर तक नहीं होंगे शुभ कार्य

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—59

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—129