धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—501

दंडी स्वामी बहुत बड़े विद्वान थे। वे सत्य के आग्रही थे और अहंकार व पाखंडी से दूर रहते थे।उनका आश्रम मथुरा में था। उसने शिक्षा पाने दूर-दूर से लोग आते थे। उनके शिष्यों में दयानंद भी थे। सभी शिष्यों के मध्य आश्रम के कार्यों का स्पष्ट विभाजन था, किन्तु दयानंद से अधिक काम लिया जाता था। उन्हें भोजन भी कम दिया जाता, जिसमे मात्र गुड़ व भुने हुए चने होते थे।

रात में पढ़ने के लिए प्रकाश की सुविधा भी उन्हें नहीं दी जाती थी। जबकि दूसरे शिष्यों को अनेक प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त थी। स्वामी जी के शिष्य दयानंद के प्रति उनके इस व्यवहार से अन्य शिष्य चकित थे और परस्पर बातचीत में इसकी निंदा भी करते थे, किन्तु दयानंद को गुरु की निंदा अच्छी नहीं लगती थी। वे अन्य शिष्यों को ऐसा करने से रोकते थे और सदैव खुश रहकर गुरु की आज्ञा का पालन करते थे।

एक दिन एक शिष्य ने स्वामी जी से इसका कारण पूछा, तो वे मौन ही रहे। अगले दिन उन्होंने अपने शिष्यों के मध्य शास्त्रार्थ करने का निर्णय लिया। सभी शिष्यों को बुलाकर उन्हें बहस हेतु एक विषय दे दिया, उन्होंने सारे शिष्यों को एक तरफ और दयानंद को अकेले दूसरी तरफ बैठाया। शास्त्रार्थ शुरू हुआ तो सभी शिष्यों पर दयानद भारी पड़े और जीत गए।

तब दंडी स्वामी ने शेष शिष्यों से कहा – देखा आप लोगों ने, दयानंद अकेला आपसे लोहा ले सकता है, क्योंकि वह हर काम पूर्ण समर्पण से करता है। दयानंद खरा सोना है और सोना आग में तपकर ही निखरता है। यही दयानंद आगे चलकर भारत के महँ समाज सुधारक दयानंद सरस्वती के नाम से विख्यात हुए।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, माता-पिता व गुरु के द्वारा सौपें गए कार्य बिना शिकायत व पूर्ण समर्पण से करने पर कार्यकुशलता व ज्ञान की वृद्धि होती है।

Shine wih us aloevera gel

https://shinewithus.in/index.php/product/anti-acne-cream/

Related posts

सत्यार्थप्रकाश के अंश—32

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस संत शिरोमणि सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—383

Jeewan Aadhar Editor Desk

ओशो : परमात्मा की झलक