अहमदाबाद
योग गुरु बाबा रामदेव के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अब भारतीय शिक्षा प्रणाली को दुरूस्त करने के लिए कई और प्रयोगों पर विचार कर सकता है। आरएसएस से संबद्ध भारतीय शिक्षण मंडल (बीएसएम) वर्तमान में चल रहे 1000 गुरुकुलों को बेहतर करने और 500 नए गुरुकुल शुरू करने पर विचार कर रहा है। बीएसएम का मनना है कि इस पद्धति से ही भारत वर्ष के गौरव को बचाया जा सकता है। इन गुरुकुलों की शुरुआत गुजरात से ही होगी। बीएसएम का कहना है कि गुरुकुल का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। इसका मकसद छात्रों को शुद्ध भारतीय शिक्षण पद्धति से तैयार करना है। अहमदाबाद के साबरमती में हेमचंद्राचार्य संस्कृत गुरुकुलम में शिक्षा की गुरुकुल प्रणाली को पुनर्जीवित करने के लिए पूरे भारत के लिए एक योजना बनाने के लिए वर्कशॉप की गई। सात दिन की इस कार्यशाला का उद्देश्य गुरुकुलों पद्धति का ब्लू प्रिंट बनाना था। बीएसएम का मनना है कि गुरुकुल शुरू करने से पहले ट्रेंड टीचर्स होना जरूरी है।
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इस वर्कशॉप में भारत में शिक्षा के स्तर को पुनर्जिवित करने के मिशन को पूरा करने के लिए गुरुकुलों को अच्छी तरह से प्रशिक्षित “आचार्य” से लैस करने की योजना पर फैसला किया जाना था। इस दौरान तय किया गया कि आने वाले पांच साल में 500 आचार्य तैयार किए जाएंगे। इसके बाद गुजरात में लिए गए फैसले पर अप्रैल 2018 में होने वाले राष्ट्रीय सम्मेलन में विचार किया जाएगा। यह सम्मेलन एमपी के उज्जैन में होगा। इस सम्मेलन में 1000 गुरुकुलों के प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे, जो देश में गुरुकुल प्रथा लाने के मुद्दे पर विचार करेंगे। इसके अलावा गुरुकुल पद्धति के प्रति लोगों को जागरूक किया जाएगा। आरएसएस का मानना है कि वर्तमान शिक्षा पद्धति 150 साल पहले ब्रिटिश हुकूमत ने भारत पर थोपी थी।
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बीएसएम के राष्ट्रीय संगठन मंत्री और संघ के पूर्ण कालिक प्रचारक मुकुल कांतिकर ने बताया कि शताब्दियों पहले अखंड भारत दुनिया का नेतृत्व करता था। उनका मानना है कि जब से अंग्रेजों की शिक्षा पद्धति भारत में आई, उसके बाद से ही शिक्षा का स्तर गिरता चला गया।
कांतिकर ने बताया कि वर्तमान शिक्षा पद्धति से देश में कुछ सीखने की जगह सिर्फ कॉम्पिटिशन और डिप्रेशन आया है। उन्होंने कहा, ‘वर्तमान शिक्षा पद्धति के सिर्फ किताब केंद्रित पढ़ाई की वजह से ही छात्रों की स्युसाइड की घटनाएं सामने आ रही हैं। ऐसी शिक्षा से न तो ज्ञान बढ़ता है और न जानकारी मिलती है। यह पद्धति सिर्फ परीक्षा पास कर नौकरी ढूंढने तक ही सीमित है।’