धर्म

ओशो : वासना का रुप

मैं एक साधु के साथ बैठा था गंगाके किनारे। बचपन के मेरे मित्र थे।फिर मैं असाधु हो गया वे साधु हो गए। दोनो बैठे बाते कर रहे थे। उनकी आंखे बार—बार तट पर कोई स्नान करने आया उसकी तरफ जाने लगीं। मैंने भी देखा कि कौन है। देखा कि एक स्त्री स्नान कर रही है। मैंने उनसे कहा कि यह बात आगे नहीं चल सकेगी। तुम्हारा ध्यान बार—बार स्त्री की तरफ जा रहा है। तुम जा कर उसे देख ही आओ। पीठ थी हमारी तरफ । वे गए, वहां से सिर ठोंकते लौटे कि स्त्री है ही नहीं वह,सिर्फ बाल लम्बे हैं,कोई पुरूष है। मगर पीछे से लम्बे बाल। वासना दबाई हो जिसने, उसके लिए बड़ी कठिनाइयां है। उसे कोई छोटी—मोटी चीज भी प्रतीक बन सकती है। नौकरी की तलाश है..तो यहां क्लिक करे।
फ्रायड ने इस संबंध में बड़ी खोज की है। जिन लोगों ने अपनी वासना को दबा लिया है,उन्हें स्त्रियां तो दूर,स्त्री की साढ़ी लटकी हो उसमें भी रस आता है। जिसने पुरूष के प्रति अपनी वासना दबा ली हो, उसे हर पुरूष की चीज में रस हो जाता है। वह विकृत्ति है। यह रूग्ण—चित्त दशा है।
तो फिर डरोगे रात सोेने में। क्योंकि सोए कि अड़चन हुई। सोए कि घबराहट। जागने में तो किसी तरह अपने को सम्हाले रहे, सम्हाल —सम्हाल चलते रहे। नींद में कौन सम्हालेगा? नींद में तो सब सम्हालना बंद हो जायेगा। और जो दिन भर दबा रहा है वह एकदम से प्रगट होगा।जीवन आधार प्रतियोगिता में भाग ले और जीते नकद उपहार
इसलिए तो मनसविद कहते हैं कि तुम्हें जानने के लिए तुम्हारे सपनों का विश्लेषण करना पड़ता है। तुम इतने झूठे हो तो तुम्हारे जागरण का तो कोई भरोसा ही नहीं है। तुम्हारा जागरण तो बिल्कुल प्रपंच हैं। तुम मनोवैज्ञानिक के पास जाओ तो वह कहता है अपने सपने लाओ। रोज—रोज तुमसे कहता है अपने सपने लाओ, सपने लिखवाओ सपने बताओ, सपने की डायरी बनाओ। तुम सोचते भी हो कि भई तुम्हें जो पूछना हो, मुझसे ही पूछ लो, सपने क्या देखना? मनोवैज्ञानिक कहता है कि सपने से ही पता चलेगा कि तुम असलियत में क्या हो। जागने में तो तुम धोखा दे सकते हो। और तुम इतने कुशल हो गए हो धोखा देने में कि दूसरे को ही नहीं दे सकते हो अपने को भी दे सकते हो। कुछ लोग तो इतने कुशल हो गए है धोखा देने में कि सपने तक में थोड़ा —सा धोखा कर जाते हैं। जैसे तुम्हें अपने बाप की हत्या करनी है,ऐसा तुम्हारा दिल में लगा रहता है कि बाप ने बहुत सताया है, कि सता रहा हैं,कि बूढ़ा अभी भी जा नहीं रहा है, कब जाएगा कब नहीं जाएगा। ऐसे तुम्हारे मन में विचार चल रहे हैं। मगर पिता पिता है और संस्कृति कहती है ,सभ्यता कहती है—आदर दो। इसलिए सब संस्कृतियां, सब सभ्यताएं कहती हैं कि पिता को आदर दो, क्योंकि खतरा हैं नहीं तो बाप बेटे के बीच झगड़ा होने वाला है। बेटे बाप को मार डालेंगे । इसको बचाने के लिए सारी सभ्यताएं। जीवन आधार न्यूज पोर्टल के पत्रकार बनो और आकर्षक वेतन व अन्य सुविधा के हकदार बनो..ज्यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
यह बड़े मजे की बात है। अगर तुम सभ्यताओं के नियम पहचानने की कोशिश करो तो उनसे राज का पता चलता है कि मामला क्या है। इतनी दूनिया की सभ्यताएं हैं , अलग—अलग ढंग,अलग—अलग व्यवस्था भोजन अलग, कपड़े अलग—मगर एक बात में सब राजी है कि बेटा बाप का सम्मान करें। अनुभव है सभी को कि अगर सम्मान ठोक—ठोक कर बिठाया नहीं गया, तो एक न एक दिन अपमान होने वाला है।बेटे के द्धारा बाप का। इसलिए उसको बिठा ही देना है ठोक—ठोक कर। फिर वह इतना गहरा बैठ जाता है संस्कार मनोवैज्ञानिक कहते हैं, सपने में भी अपने बाप की हत्या नहीं करते, अपने चाचा की कर देते हैं, क्योंकि वह पिता जैसे मालूम नहीं होते हैं। अब चाचा का कोई हाथ ही नहीं। चाचा से तो दोस्ती होती है। चाचा से तो सबकी दोस्ती होती है। चाचा तो प्यारा आदमी होता है। बाप जैसा है और बाप जैसा नहीं होता। मित्रता होती है। न आज्ञा देता है न जर्बदस्ती स्कूल भेजता बल्कि मौका पड़ जाए तो कुछ पैसे भी दे देता है,स्कूल से निकालना हो तो छूट्टी भी निकलवा देता है। चाचा भिन्न तरह का आदमी होता है। चाचा को कौन मारना चाहता है।
लेकिन सपने में, मनावैज्ञानिक कहते हैं पिता हत्या करने का भाव सपने तक में आदमी रोक लेता है कि यह बात तो हो ही नहीं सकती। चाचा को मार देता है चाचा पिता जैसा होता है यह प्रतीक बन जाता है।
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