धर्म प्रेमी सज्जनों! यह संसार समुद्र है अपने जीवन का मन्थन करो। मन को मंदराचल पर्वत बनाओ और प्रेम की डोर से उसको मथो तो ज्ञान, वैराग्य ,भक्ति रूपी अमृत की प्राप्ति होगी जिसके पान से आप भी अमर अजर, अविनाशी शिव बन जाओगे। बन्धुओं हमेशा प्रिय बोलो, कर्कश बोली ही विष है, जिसको सुनते ही मनुष्य क्रोध की अग्नि में जल उठता है, इसीलिए कभी कटु मत बोलो। सदा प्रिय बोलो। शास्त्रों में यहां तक कहा है कि कटुसत्य भी मत बोलो। अन्धे को अन्धा कहना कटु सत्य है, अत: अन्धे को अन्ध नहीं, सुरदास जी कहो। मीठी वाणी से दूसरों को तो सुख मिलता ही है, अपने को भी आनन्द मिलता है।
धर्म प्रेमी आत्माओं, दूसरों की भलाई के लिए यदि कष्ट भी सहने पड़ें, तो उसकी परवाह मत करो, परन्तु अपने सुख के लिए कभी दूसरों को कष्ट पहुंचे, ऐसा कार्य मत करो। मैंने कई शिवभक्तों को भांग का सेवन करते हुए देखा है, जो गलत हैं। यदि कोई सन्त—महात्मा, या ब्राह्मण धूम्रपान आदि करता है तो ऐसे सन्त महात्मा या ब्राह्मण धर्म के नाम पर कंलक है। शास्त्रों में लिखा है— तम्बाकू पीने वाले का, खानेवाले को,यदि कोई दान पूण्य करता है तो सब बेकार है, व्यर्थ है। इसीलिए दान—पुण्य भी पात्र को देने से ही फलित होता है ।
सन्त कैसे होते है? सन्त वही होते हैं जो दूसरों के दु:खों से द्रवित हो उठे और उसको सुखी बनाने के लिए हर सम्भव प्रयत्न करें। दूसरों को सुख देने के समान कोई धर्म नहीं है। और दूसरों को पीड़ा पहुंचाने के सम्मान कोई अर्धम—पाप नहीं है।