धर्म

सत्यार्थ प्रकाश के अंश-04

ब्रह्मचर्य तीन प्रकार का होता है कनिष्ठ- जो पुरूष अन्नरसमय देह और पुरि अर्थात् देह में शयन करने वाला जीवात्मा, यज्ञ अर्थात् अतीव शुभ गुणों से संङग्त और सत्कर्तव्य है इस को अवश्य है कि 24 वर्ष प्रयंर्त जितेन्द्रिय अर्थात् ब्रह्मचर्य रह कर वेदादि विद्या और सुशिक्षा का ग्रहण करे और विवाह करके भी लम्पटता न करें तो उसके शरीर में प्राण बलवान होकर सब शुभगुणों के वास कराने वाले होतेे हैं। इस प्रथम वय में जो उस को विद्याभ्यास में सनतप्त करे और वह आचार्य वैसा ही उपदेश किया करे और ब्रह्मचर्या से रहूँगा तो मेरा शरीर और आत्मा आरोग्य बलवान् होके शुभगुणों को बसाने वाले मेरे प्राण होंगे। हे मनुष्यों तुम इस प्रकार से सुखों का विस्तार करो,जो मैं ब्रहा्रचार्य का लोप न करूं। 24 वर्ष के पश्चात् गृहाश्रम करूंगा तो प्रसिद्ध है कि रोगरहित रहूंगा और आयु भी मेरी 24 वर्ष के पश्चात् गृहाश्रम करूंगा तो प्रसिद्ध है कि रोगरहित रहूँगा और आयू भी मेरी 80 वर्ष होगी। जीवन आधार प्रतियोगिता में भाग ले और जीते नकद उपहार
मध्यम ब्रह्मचर्य-यह है जो मनुष्य 44 वर्ष पर्यन्त ब्रह्मचारी रह कर वेदाभ्यास करता है उसके प्राण, इन्द्रियाँ अन्त:करण और आत्मा बलयुक्त होके सब दुष्टों को रूलाने और श्रेष्ठों का पालन करनेहारे होते हैं। जो मैं इसी प्रथम वय में जैसा आप कहते हैं कुछ तपश्चर्या करूं तो मेरे ये रूद्ररूप प्राण्युक्त यह मध्यम ब्रह्मचारी सिद्ध होगा। हे ब्रह्मचर्य लोगों। तुम इस ब्रह्मचर्य को बढ़ाओं। जैसे मैं इस ब्रह्मचर्य का लोप न करके यज्ञस्वरूप होता हूँ और उसी आर्चाकूल से आता और रोगरहित होता हूँ जैसा कि यह ब्रह्मचर्य अच्छा काम करता है वैसा तुम किया करो।
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उत्तम ब्रह्मचर्य— 48 वर्ष पर्यन्त का तीसरे प्रकार का होता है। जैसे 48 अक्षर की जगती वैसे जो 48 वर्ष पर्यन्त यथावत् ब्रह्मचर्य करता है उसके प्राण अनुकूल होकर सकल विद्याओं का ग्रहण करते हैं। आचार्य और माता -पिता अपने सन्तानों को प्रथम वय में विद्या और गुणग्रहण के लिये तपस्वी कर और उसी का उपदेश करें और वे सन्तान आप ही आप अखंडित ब्रह्मचर्य सेवन से तीसरे उत्तम ब्रह्मचर्य का सेवन करके पूर्ण अर्थात् चार सौ वर्ष पर्यन्त आयु को बढ़ावें वैसे तुम भी बढ़ाओ। क्योंकि जो मनुष्य इस ब्रह्मचर्य को प्राप्त होकर लोप नहीं करते वे सब प्रकार के रोगों से रहित होकर धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष को प्राप्त होते हैं।
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