धर्म

सत्यार्थ प्रकाश के अंश—06

आचार्य अपने शिष्य को उपदेश करे और विशेषकर राजा इतर क्षत्रिय, वैश्य और उत्तम शूद्र जनों को भी विद्या का अभ्यास अवश्य करावें, क्योंकि जो ब्रहा्रण हैं वे ही केवल विद्याभ्यास करे और क्षत्रियादि न करें तो विद्या, पढऩे पढ़ाने और क्षत्रियादि से जीविका को प्राप्त होके जीवन धारण कर सकते हैंं। जीविका के अधीन और क्षत्रियादि के आज्ञादाता और यथावत् परीक्षक दण्डदाता न होने से ब्रहा्रणादि सब वर्ण पाखण्ड ही में फंस जाते हैं और जब क्षत्रियादि विद्वान् होते हैं तब ब्रहा्रण भी अधिक विद्याभ्यास आरै धर्मपथ में चलते हैं और उन क्षत्रियादि विद्वानों के सामने झूठा पाखण्ड, व्यवहार भी नहीं कर सकते और जब क्षत्रियादि अविद्वान् होते हैं तो वे जैसा अपने मन में आता है वैसा ही करते कराते हैं। इसलिये अधिक प्रयत्न करावें। क्योंकि क्षत्रियादि ही विद्या, धर्म राज्य, और लक्ष्मी की वृद्धि करने हारे हैं, वे कभी भिक्षावृत्ति नहीं करते, इसलिए वे विद्या व्यवहार में पक्षपाती भी नहीं कर सकते। और जब सब वर्णो में विद्या सुशिक्षा होती है तब कोई भी पाखण्डरूप अधर्मयुक्त मिथ्या व्यवहार को नहीं चला सकता। इससे क्या सिद्ध हुआ कि क्षत्रियादि को नियम में चलाने वाले ब्रहा्रण और सन्यासी तथा बाहा्रण और सन्यासी को सुनियम में चलाने वाले क्षत्रियादि होते हैं। इसलिये सब वणो के स्त्री पुरूषों में विद्या और धर्म प्रचार अवश्य होना चाहिए।जीवन आधार प्रतियोगिता में भाग ले और जीते नकद उपहार
अब जो पढऩा-पढ़ाना हो वह-वह अच्छी प्रकार परीक्ष करके होना योग्या है। परीक्ष पांच प्राकर से होती है-
एक- जो-जो ईश्वर के गुण, कर्म, स्वभाव और वेदों से अनुकूल हो वह-वह सत्य और उससे विरूद्ध असत्य है।
दूसरी- जो-जो सृष्टिक्रम से अनुकुल वह-वह सत्य और जो-जो सृष्टिक्रम से विरूद्ध है, और सब असत्य है। जैसे कोई कहै विना माता पिता के योग से लडक़ा उत्पन्न हुआ ऐसा कथन सृष्टिक्रम से विरूद्ध होने से सर्वथा असत्य है। नौकरी की तलाश है..तो यहां क्लिक करे।
तीसरी- आप्त अर्थात् जो धार्मिक विद्वान, सत्यवादी, निष्कपटियों का संग उपदेश के अनुकूल है वह-वह ग्राहा्र और जो-जो विरूद्ध वह-वह अगा्रहा्र हैं।
चौथी- अपने आत्मा की पवित्रता विद्या के अनुकूल अर्थात् जैसरा अपने को सुख प्रिय और दु:ख अप्रिय है वैसे ही सर्वत्र समझ लेना कि मैं भी किसी को दु:ख वा सुख दूँगा तो वह भी अप्रसन्न और प्रसन्न होगा। जीवन आधार न्यूज पोर्टल के पत्रकार बनो और आकर्षक वेतन व अन्य सुविधा के हकदार बनो..ज्यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
और पांचवी-आठों प्रमाण अर्थात् प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द, ऐतिहा्र, अर्थापत्ति, सम्भव और अभाव इनमें से प्रत्यक्ष के लक्षणादि के जो-जो सूत्र नीचे लिखेंगे वे-वे सब न्यायाशास्त्र के प्रथम और द्वितीय अध्याय के जानो।
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Jeewan Aadhar Editor Desk