धर्मप्रेमी सज्जनों कोई भी दरबार पर कुछ मांगने आता है तो उसे इन्कार मत करो, उसे हाथ का उत्तर दो, वह भिक्षुक मांगने के साथ साथ यह समझाने भी आता है कि मैंने पिछले जन्म में दान नहीं दिया, उसी के परिणामस्वरूप आज मुझे मांगना पड़ रहा है और यदि आप भी कुछ नहीं देंगे तो अगले जन्म में आपको भी मेरे समान दरिद्र होकर मांगना पड़ेगा, इसीलिए बन्धुओं शास्त्रों में वर्णित अपनी सम्पति का दंसवा भाग अवश्य दान करो ताकि परलोक में कभी मुसीबत न आए।
मन-मन-धन सब परमात्मा का है। इस शरीर पर भी आपका अधिकार नहीं है तो सम्पति और संतति पर कैसे हो सकता है? सब कुछ परमात्मा का है, आपका अपना तो केवल सत्कर्म है जितना सत्कर्म आप करोगे, उतना ही आपके साथ जायेगा। जो जीव मेरा मेरा करता है, वही मरता है और जो तेरा तेरा करता है, परमात्मा उसे ही अपनाते हैं।