धर्म

सत्यार्थप्रकाश के अंश-08

आर्यवर्त के राजपुरूषों की स्त्रियां धनुर्वेद अर्थात् युद्धविद्या भी अच्छी प्रकार जानती थी, क्योंकि जो न जानती होतीं तो कैकेयी आदि दशरथ आदि के साथ युद्ध में क्योंकर जा सकती? और युद्ध कर सकती। इसलिये ब्रह्माणी को सब विद्या,क्षत्रियों को सब विद्या और युद्ध तथा राजविद्या विशेष, वैश्या को व्यवहार विद्या और शूद्रा को पाकादि सेवा की विद्या अवश्य पढऩी चाहिये। जीवन आधार प्रतियोगिता में भाग ले और जीते नकद उपहार
जैसे पुरूषों को व्याकरण, धर्म और अपने व्यवहार की विद्या अवश्य पढनी चाहिये। वैसे स्त्रियों को भी व्यकरण, धर्म ,वैद्यक गणित,शिल्पविद्या तो अवश्य पढऩी ही सिखनी चाहिये। क्योंकि इनके सीखे विना सत्याइसत्य का निर्णय, पति आदि सक अनुकूल वर्तमान, यथायोग्य सन्तानोत्पत्ति, उनका पालन, वृद्र्धन और सुशिक्षा करना, घर के सब कार्यों को जैसा चाहिए वैसा कराना वैद्यक विद्या से औषधवत्, अन्न पान बना सकती है। जिससे घर में रोग कभी न आवे और सब लोग सदा आनन्दित रहें। शिल्पविद्या के जाने विना घर का बनवाना, वस्त्र आभूषण आदि का बनवाना, गणितवद्या के विना सब का हिसाब समझना समझाना,वेदादि शास्त्रविद्या के विबिना ईश्वर और धर्म को न जानके अर्धम से कभी नहीं बच सके । नौकरी की तलाश है..तो यहां क्लिक करे।

इसलिए वे ही धन्यवादार्ह और कृतकृत्य हैं कि जो अपने सन्तानों को ब्रहा्रचर्य, उत्तम शिक्षा और विद्या से शरीर और आत्मा के पूण्र्र्ञ्ज बल को बढ़ावे जिस से वे सन्तान मातृ, पितृ, पति,सासु,श्वसुर, राजा, प्रजा, पड़ोसी, इष्टमित्र और सन्तानादि से यथायोग्य धर्म से वर्ते। यही कोश व्यय अक्षय है। इस को जितना व्यय करे उतना ही बढ़ता है। जीवन आधार न्यूज पोर्टल के पत्रकार बनो और आकर्षक वेतन व अन्य सुविधा के हकदार बनो..ज्यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
जाय अन्य सब कोश व्यय करने से घट जाते हैं। और दायभागी भी निज भाग लेते हैं। और विद्याकोश का चोर वा दायभागी कोई भी नहीं हो सकता। इस कोश की रक्षा और वृद्धि करने वाला विशेष राजा प्रजा भी हैं।
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