धर्म

ओशो : मूल्य के पार

रवीन्द्रनाथ ने छह हजार गीत लिखे हैं। जब वे एक गीत बनाते हैं, जब गीत बनता था, उतरता था, तो वे द्वार-दरवाजे बन्द कर लेते थे, ताकि कोई बाधा न दे। कभी दिन बीत जाता, दो दिन बीत जाते, भोजन भी न लेते, स्नान भी न करते, कब सोते, कब उठते, कुछ हिसाब न रह जाता, बिल्कुल दीवाने जैसी उनकी दशा हो जाती थी:करीब-करीब विक्षिप्त हो जाते थे। और जब गीत पूरा हो जाता तो उसे सरका कर रख देते। शायद ही अपना गीत दुबारा उन्होंने फिर पढ़ा हो। जीवन आधार प्रतियोगिता में भाग ले और जीते नकद उपहार
लेकिन यह कथा सारे कलाकारों की है, सारे चित्रकारों, सारे मूर्तिकारों की है। और यही कथा प्रत्येक मनुष्य की भी है। मनुष्य होने के लिए हमने कितनी कठिनाई से यात्रा की है, कितने लड़े है और जब मनुष्य हो गए हैं तो बस बात ही सका। अब तो लोग यही पूछते है कि समय नहीं कटता, ताश खेले, कि फिल्म देखने चलें जायें, कि किसी के झगड़े में गाली-गलोच कर लें, किस तरह समय काटे? और इस समय को पाने के लिए तुमने कितनी लम्बी यात्रा की थी, कितना दांव पर लगाया था।पार्ट टाइम नौकरी की तलाश है..तो यहां क्लिक करे।
यह आदमी के मन का अनिवार्य अंग है। कि जब पानें के लिए चलता है तब तो सब दांव पर लगा देता है, लेकिन जब मिल जाता है तो बस तत्क्षण मिलते ही सारी उत्सुकता समाप्त हो जाती है। एक स्त्री के पीछे तुम दीवाने थे, फिर उसे पा लिया और पाते ही तुम्हारा सारा उत्साह क्षीण हो जाता है। एक मकान तुम बचाना चाहते थे और कितना सोचते थे, रात सोये नहीं, सपने देखते थे, धन इकठ्ठा करते थे, फिर मकान बन गया और बस फिर मकान भूल गया। फिर उस मकान को तुम दुबारा देखते भी नहीं। रहते भी हो उसमें तो तुम कुछ रस-विमुग्ध नहीं हो, तुम कुछ आनंदित नहीं हो।
ऐसा ही जीवन में भी हुआ है। और चित्र बना कर न देखो तो चलेगा। कविता लिख कर फिर न गुनगुनाओं, चलेगा। मूर्ति बना कर एक तरफ सरका दो, कूड़े-कचरे में डाल दो, चलेगा। क्योंकि ये सब छोटी बाते हैं। लेकिन जीवन बहुत बहुमूल्य है। इसकी कोई कीमत नहीं। यह बेशकीमती है। अमूल्य है। मूल्य के पार है। मूल्यतीत है।
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