संतों का चरित्र कपास के चरित्र (जीवन) के समान शुभ है, जिसका फल नीरस, विशद और गुणमय होता है। कपास की डोडी नीरस होती है, संत चरित्र में भी विषय आसक्ति नहीं है, इसलिए वह भी नीरस है। जैसे नीरस डोडी में छुपा कपास उज्ज्वल होता है, संत का हृदय भी अज्ञान और पाप रूपी अन्धकार से रहित निर्मल होता है, इसलिए वह विशद है। पार्ट टाइम नौकरी की तलाश है..तो यहां क्लिक करे।
जैसे कपास में तंतु या रेशे होते हैं, उसी प्रकार संत का चरित्र भी सद्गुणों का भंडार होता है, इसलिए वह गुणमय है। जैसे कपास का धागा सुई द्वारा किए हुए छेद को अपना तन देकर ढँक देता है, अथवा कपास जैसे लोढ़े जाने, काते जाने और बुने जाने का कष्ट सहकर भी वस्त्र के रूप में परिणत होकर दूसरों के गोपनीय स्थानों को ढँकता है, उसी प्रकार संत स्वयं दुःख सहकर दूसरों के छिद्रों (दोषों) को ढँकता है, जिसके कारण उसने जगत में वंदनीय यश प्राप्त किया है।
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