धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—18

एक जापानी अपने मकान की मरम्मत के लिए उसकी दीवार को खोल रहा था। ज्यादातर जापानी घरों में लकड़ी की दीवारो के बीच जगह होती है। जब वह लकड़ी की इस दीवार को उधेड़ रहा तो उसने देखा कि वहां दीवार में एक छिपकली फंसी हुई थी। छिपकली के एक पैर में कील ठुकी हुई थी।

उसने यह देखा और उसे छिपकली पर रहम आया। उसने इस मामले में उत्सुकता दिखाई और गौर से उस छिपकली के पैर में ठुकी कील को देखा। अरे यह क्या! यह तो वही कील है जो दस साल पहले मकान बनाते वक्त ठोकी गई थी। यह क्या !!!!

क्या यह छिपकली पिछले दस सालों से इसी हालत से दो—चार है?
दीवार के अंधेरे हिस्से में बिना हिले-डुले पिछले दस सालों से!! यह नामुमकिन है। मेरा दिमाग इसको गवारा नहीं कर रहा। उसे हैरत हुई। यह छिपकली पिछले दस सालों से आखिर जिंदा कैसे है!!! बिना एक कदम हिले-डुले जबकि इसके पैर में कील ठुकी है!

उसने अपना काम रोक दिया और उस छिपकली को गौर से देखने लगा। आखिर यह अब तक कैसे रह पाई और किस तरह की खुराक इसे अब तक मिल पाई।

इस बीच एक दूसरी छिपकली ना जाने कहां से वहां आई जिसके मुंह में खुराक थी।
अरे!!!! यह देखकर वह अंदर तक हिल गया। यह दूसरी छिपकली पिछले दस सालों से इस फंसी हुई छिपकली को खिलाती रही।

जरा गौर कीजिए, वह दूसरी छिपकली बिना थके और अपने साथी की उम्मीद छोड़े बिना लगातार दस साल से उसे खिलाती रही। आप अपने गिरेबां में झांकिए क्या आप अपने जीवनसाथी के लिए ऐसी कोशिश कर सकते हैं?

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