धर्म

सत्यार्थ प्रकाश के अंश—18

जो दण्ड है वही पुरूष राजा,वही न्याय का प्रचारकत्र्ता और सब का शासनकत्र्ता,वही चार वर्ण और आश्रमों के धर्म का प्रतिभू अर्थात् जामिन है।
वही प्रजा का शासनकत्र्ता सब प्रजा का रक्षक,सोते हुए प्रजास्थ मनुष्यों में जागाता है इसी लिये बुद्धिमान लोग दण्ड ही को धर्म कहते हैं।
जो दण्ड अच्छे प्रकार विचार से धारण किया जाय तो वह सब प्रजा को आनन्दित कर देता है और जो विचारे चलाया जाय तो सब ओर से राजा का विनाश कर देता है।पार्ट टाइम नौकरी की तलाश है..तो यहां क्लिक करे।
विना दण्ड के सब पूर्ण दूषित और सब मर्यादा छिन्न-भिन्न हो जायें। दण्ड के यथावत् न होने के से सब लोगों का प्रकोप हो जावे।
जहां कृष्णवर्ण रक्तनेत्र भयंकर पुरूष के समान पापों का नाश करनेहारा दण्ड विचरता है वहां प्रजा मोह को प्राप्त न होके आनन्दित होती है परन्तु दण्ड का चलाने वाला पक्षपातरहित विद्वान हो तो। जो उस दण्ड का चलाने वाला सत्यवादी,विचार के करनेहारा, बुद्धिमान् ,धर्म,अर्थ और काम की सिद्धि करने में पण्डित राजा है उसी को उस दण्ड का चलानेहारा विद्वान लोग कहते हैं।
जो दण्ड को अच्छे प्रकार राजा चलाता है वह धर्म,अर्थ और काम की सिद्धि का बढ़ाता है और जो विषय में लम्पट,टेढ़ा,ईष्र्या करनेहारा,क्षुद्र नीचबुद्धि न्यायाधीश राजा होता है,वह दण्ड से ही मारा जाता है। जीवन आधार न्यूज पोर्टल के पत्रकार बनो और आकर्षक वेतन व अन्य सुविधा के हकदार बनो..ज्यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
जब दण्ड बड़ा तेजोमय है उस को अविद्वान्, अधर्मात्मा धारण नहीं कर सकता। तब वह दण्ड धर्म से रहित कुटुम्बसहित राजा ही नाश कर देता है।
क्योंकि जो आप्त पुरूषों के सहाय, विद्या, सुशिक्षा से रहित, विषयों में आसक्त मूढ़ है वह न्याय से दण्ड को चलाने में समर्थ कभी नहीं हो सकता।
और जो पवित्र आत्मा अत्याचार और सत्पुरूषों का सहीं यथावत् नीतिशास्त्र के अनुकूल चलनेहारा श्रेष्ठ पुरूषों के सहाय से युक्त बुद्धिमान् है वही न्यायरूपी दण्ड के चलाने में समर्थ होता है।
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