धर्म

ओशो : संत बनना कठिन

यह बहुत आसान है कि दुनिया में साधु बन जाना, संत बनना कठिन है। और संत और साधु का फर्क यही है। साधु का मतलब बाहर, जो सबके लिये साधु हो गया है। जिसके कारण बाहर की दुनिया में कोई आसाधुता नहीं होती। लेकिन भीतर साधु हुआ कि नहीं? क्योंकि यह हो सकता है तुम बाहर हत्या न करो और भीतर हत्या का विचार करो। अक्सर तो ऐसा होता है जो बाहर हत्या नहीं करते वे भीतर हत्या के बहुत विचार करते है। जो बाहर हत्या कर लेते हैं शायद भीतर विचार नहीं करते। अब विचार करने की क्या जरूरत हैं। अक्सर ऐसा हो जाता है।
मैं जेलों में बहुत दिन तक जाता रहा। कारागृह के कैदियों से मेरे लंबे नाते रिश्ते बने। मैं चकित हुआ यह बात जानकर कि कारागृह में जो कैदी हैं-कोई हत्यारा है ,कोई चोर है,कोई कुछ है,कोई जीवन-भर के लिये कैद में पड़ा है-उनकी आंखों में एक तरह की सरलता दिखाई पड़ती है, जो कि तथाकथित सज्जनों की आंखों में नहीं दिखायी पड़ती। एक तरह का भोलापन मालूम पड़ता है। और मैंने उनसे पूछा,,,क्योंकि मेरा रस मनोविज्ञान में हैं,मैं उनसे बार-बार पूछा कि अपने सपने कभी आते हैं। किस तरह के आते हैं? जीवन आधार प्रतियोगिता में भाग ले और जीते नकद उपहार
तो मैं चकित हुआ जानकर यह बात कि अपराधी अक्सर सपने देखते हैं कि वे साधु हो गये,कि अब अपराध नहीं करते है। और साधु,जिनको तुम कहते हो,अक्सर सपने देखते हैं कि जो-जो अपराध उन्होंने नहीं किये हैं, वे सपनों में कर रहे हैं। जो चोरियां उन्होंने नहीं कीं, वे सपने में कर लेते हैं। जो काम-काम उन्होंने जिंदगी में नहीं किया,वह सपने में कर लेते हैं। पार्ट टाइम नौकरी की तलाश है..तो यहां क्लिक करे।
तुम्हारा सपना खबर देता है कि तुमने जिंदगी में क्या नहीं किया,क्योंकि सपना परिपूरक है। दिन में उपवास किया तो रात सपने में भोजन कर लेते हो। दिन में पड़ोस की स्त्री को देखकर मन को सम्हाल लिया और कहा कि मैं साधु हूं,ऐसी बात उठनी ही नहीं चाहिये मेरे मन में,लेकिन रात पड़ोस की पत्नी को लेकर भाग गये सपने में। सुबह हंंसते हो, मगर जो रात हुआ हैं,वह अकारण नहीं हुआ। सपनों में समा्रट बन जाते हो,विजेता हो जाते हो। सारी दुनिया में यश-कीर्ति फैल जाती है। सोने के महलों में रहने लगते हैं। जीवन आधार न्यूज पोर्टल के पत्रकार बनो और आकर्षक वेतन व अन्य सुविधा के हकदार बनो..ज्यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
भिखमंगे अक्सर सम्राट होने के सपने देखते हैं। जो नहीं है, उसका सपना होता है। क्योंकि सपना एक तरह की परिपूर्ति है। सपना मन को सांत्वना है।
साधु वह, जो बाहर से तो अच्छा हो गया है। सन्त वह,जो भीतर से भी अच्छा हो गया है,जिसकी साधुता बाहर और भीतर सम हो गयी है,जिसका तराजू बीच में ठहर गया हैं,जिसके भीतर सपने में भी बुराई नहीं रही है।
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