एक समय की बात है, जब रामायण युद्ध के दौरान लक्ष्मणजी मेघनाद के शक्तिशाली शस्त्र से मूर्छित हो गए। उनकी प्राण-स्थिति संकट में थी। वैद्य सुषेण ने उपाय बताया— “जीवन रक्षक संजीवनी बूटी हिमालय की पर्वत श्रृंखला में मिलेगी। यदि समय रहते वह लाकर दी जाए तो लक्ष्मणजी का प्राण बच सकता है, अन्यथा असंभव है।”
यह सुनकर सब स्तब्ध हो गए। रात्रि का समय, अजनबी पहाड़, अपरिचित औषधि, और सीमित समय—सब मिलकर इस कार्य को असंभव बना रहे थे। परंतु तभी श्रीराम ने हनुमानजी की ओर देखा।
हनुमानजी ने बिना किसी हिचक के प्रणाम कर कहा— “प्रभु! आपके कार्य में कोई कार्य असंभव नहीं हो सकता। यह कार्य भी संभव होगा।” वे तुरंत आकाश में उड़ चले।
मार्ग में अनेक बाधाएँ आईं— विशालकाय राक्षस काला नाग ने उनका मार्ग रोका। पर्वतों का भ्रम, अंधेरी रात और तीव्र हवाओं ने उन्हें रोकने की कोशिश की। संजीवनी बूटी की पहचान में कठिनाई आई।
लेकिन हनुमानजी ने हिम्मत नहीं हारी। जब वे बूटी पहचान न सके, तो उन्होंने पूरा पर्वत ही उखाड़ लिया और वापस लौट आए। संजीवनी बूटी से लक्ष्मणजी स्वस्थ हुए और सभी ने असंभव को संभव बनाने वाले श्री हनुमान की महिमा को प्रणाम किया।
निष्ठा और विश्वास – यदि लक्ष्य पवित्र है और मन में अटूट विश्वास है, तो कोई भी बाधा रोके नहीं रख सकती।
साहस और संकल्प – कठिनाइयाँ आएंगी, परंतु यदि “करना है” ठान लिया तो मार्ग निकल ही जाता है।
विकल्प खोजने की कला – जब औषधि पहचान न सकी, तो हनुमानजी ने हार नहीं मानी, बल्कि नया उपाय ढूँढा—पूरा पर्वत ले आए।
भक्ति और सेवा भाव – यदि कार्य ईश्वर और लोक कल्याण के लिए हो, तो असंभव भी संभव बन जाता है।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, आस्था, परिश्रम और दृढ़ निश्चय से जीवन की सबसे कठिन परिस्थितियों पर विजय पाई जा सकती है।