धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—90

नारद जी की वीणा तथा श्रीकृष्ण की बंशी यह संदेश देती है कि जीवन एक संगीत है इसको गाते हुए इसे आनन्दमय व्यतीत करो। बंशी के बजते ही हृदय आनन्द में झूम उठता है। चाहे कैसी भी मुसीबत क्यों न आये गाना बन्द मत करो। यदि ध्यान से जरा सोचें तो संगीत का जन्म ही सुखमयी और दु:खमयी अवस्था में हुआ। जब मनुष्य बहुत सुखी होता है या किसी कारणवश बहुत दु:खी होता है तो अकेले में गुनगुनाए बगैर नहीं रह सकता। उस समय हृदय से निकले हुए भाव शब्दों के परिवेश में हृदय को छू जाने वाले इतने मधुर या इतने द्रवित होते हैं कि उनको सुनने वाला या तो आनन्द से झूम उठेगा या गमगीन होकर गाने लगेगा।

जैसे बगिया में खिले हुए फूल आदमी के मन को मोहित करते हैं,उसी प्रकार मुस्कुराते हुए चेहरे ही दूसरों को अच्छे लगते हैं। हँसने वालों के साथ हँसने वालों कि इस दुनिया में कोई कमी नहीं है परन्तु रोने वालों के साथ आँसू बहाने वाला कोई विरला होगा, इसीलिए हमेशा हर परिस्थिति में मानव को मुस्कुराना चाहिए। जीवन हमारी वीणा है। वीणा के तार यदि ठीक होंगे तो स्वर मधुर होगा। ठीक इसी प्रकार मन रूपी तारों को कभी ढीला मत होने दो। यदि कभी कोई दु:ख आ भी जाए और बरबस आंखें नम हो जाएँ,बरसने लगें तो परमात्मा के दरबार में जाकर उनके चरणों को अपने आँसुओं से धो डालो, मन हल्का हो जायेगा। जैसे बरसात आने पर बादलों का पानी खत्म हो जाता है,आकाश स्वच्छ और चमकीला हो जाता है, ठीक उसी प्रकार मन का उद्वेग प्रभु के सामने प्रकट कर देने पर मन को शान्ति मिलती है।

अपना दु:ख किसी मानव के सामने मत रोओ। वह सुन तो लेता है,परन्तु फिर किसी और के सामने हँसी उड़ाता है,इसीलिए परमात्मा के सिवाय या सद्गुरू के सिवाय अपना दु:ख किसी को मत बताओ।
दु:ख और सुख तो जीवन में रात-दिन की तरह आते जाते रहते है। इतिहास उन्ही का अमर हुआ है जिन्होंने कष्टों को हंसते हंसते सहन किया है।

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Jeewan Aadhar Editor Desk