धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—109

दशरथजी ने गुरू की प्रार्थना स्वीकार की और राम के पास आए और कहा,राम कल तुम्हारा राज्यभिषेक होगा। सुनकर राम उदास हो गए और पूछने लगे, गुरूदेव क्या मैं अकेला ही राजा बनूगा? गुरूदेव मुस्कुराये और बोले, बेटा राजा तो एक ही होता है। तुम ज्येष्ठ पुत्र हो, इस नाते केवल तुम्हारा ही राज्यभिषेक किया जायेगा।

सारा शहर सजाया गया। चारों तरफ खुशियां छा गई, लेकिन देवताओं को जब पता चला तो चिन्ता में पड़ गए और सोचने लगे,कि यदि राम राजा बन जायेंगे तो रावण का वध कौन करेगा? देवताओं ने विघ्रेश्वरी देवी की आराधना की और देवी प्रकट हुई। देवताओं ने कहा तुम किसी में घुसकर उसकी सुबुद्धि का हरण करो और कुबुद्धि से राज्यभिषेक में बाधा उपस्थित करो,क्योंकि रावण का वध वही करेगा,जो चौहद साल से ब्रह्मचारी हो,साधु वेष हो, दिव्य पुरूष अवतारी हो उसको मार सकता है। यह सब श्रीराम ही कर सकते हैं।

विघ्रेश्वरी माता ने मंथरा दासी में प्रवेश किया। मंथरा दासी सीधी कैकयी रानी के पास आई और जोर-जोर से रोने लगी,चिल्लाने लगी,रानी साहिबा। आप तो बरबाद हो गई। आपके प्रति षड्यन्त्र रचा जा रहा है। कल राम राजा बनेगा और कौशल्या राज माता। कैकयी श्रीराम को बहुत प्यार करती थी,परन्तु ज्योंहि उसने मंथरा का स्पर्श किया तो उसमें भी कुबुद्धि का प्रवेश हो गया।

मंथरा ने कहा,कैकयी जब तुम विवाह करके राज-महल में आई थी तो राजा ने तुम्हें दो वरदान मांगने के लिए कहा था,क्योंकि तुमने युद्ध-भुमि में राजा दशरथ की सहायता की थी, अत: रानीजी,वे दो वर मांगने का समय आ गया है। एक वर में राजा भरत बने और दूसरे वर में राम चौदह साल का बनवास हो, इस प्रकार अपने दो वर मांग लो।

कैकयी ने मंथरा के बहकावे में आकर त्रिया चरित्र किया। केशों को खोल दिया,गन्दे,मैले-पुराने वस्त्र धारण किए, आँखों में सरसों का तेल लगा लिया धरती पर बिना बिस्तर लगाए लेट गई,उदास चेहरा,कोप-भवन में चली गई। राजा दशरथ महलों में आये। सभी दिखाई दे रहे थे लेकिन कैकयी वहाँ नहीं थी, पूछने पर पता चला कि रानीजी नाराज हैं। राजा दशरथ कोप भवन में आए। कैकयी की दशा देखकर राजा दशरथ को अंत्यत दुख हुआ। जब दशरथ ने प्यार से उनको प्यार से सहलाया तो आंखों से श्रवण भादों की तरह अश्रुधारा बह निकली और बिगड़ कर कहा, राजन! रहने दो, इस झूठ प्यार में क्या रखा है,मुझे मत छुओ। दशरथ ने कहा हे प्रिय, एक दिन आपने ही तो कहा था कि राज्यभार राम को सौंप कर आप निवृत हो जाओ,अत: मैंने तुम्हारी बात मान ली है। कल राम का राज्यभिषेक है यही शुभ सुचना मैं तुम्हें देने आया हूं।

यह सुनकर तो कैकयी का क्रोध और भी उफन गया और कहने लगी, राजन् आपने मेरे साथ कपट किया है, छल किया है। कैसा छल है। कैसा छल? हे राजन् आपने कहा था कि आप मेरे पुत्र को राज्य देकर राजा बनायेंगे,परन्तु आपने राम को राजा बनाने की घोषण कर दी। आपको याद होगा कि रणभुमि में मुझे दा वरदान मांगने के लिए कहा था।

दशरथ ने कहा, हाँ प्रिये, मैं राम की सौगन्ध खाकर कहता हूं कि मेरे मन में तुम्हारे प्रति कोई छल नहीं है,मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं। तुम जो चाहो मांगो मैं खुशी से दो वरदान देने के लिए तैयार हूँ। कैकयी ने फिर कहा ,कहीं आप देने से इन्कार तो नहीं कर देंगे?

दशरथ ने कहा,मेरा वचन कभी मिथ्या नहीं होगा, क्योंकि मैं सूर्यवंशी हूँ। जो चाहो मांग लो। रघुकुल की यह रीति रही है कि वचन के लिए यदि मरना भी पड़े तो भी हँसते-हँसते प्राण देकर भी वचन को निभाते हैं।

कैकयी ने कहा,राजन् प्रथम वरदान में कल राज्यभिषेक राम का नहीं, भरत का होना चाहिए और दूसरे वरदान में राम को चौदह साल का बनवास दे दिया जाए।

दूसरे वरदान को सुनते ही राजा दशरथ मूचर््िछत होकर गिर पड़े और मुख से सीता-राम,सीता-राम बोलने लगे। होश में आए तो कैकश्ी से पूछा हे कैकयी। भरत को मैं राजा तो बना दूँगा,लेकिन राम को वन क्यों भेज रही हो? उससे क्या अपराध हुआ हैं? मेरे राम को मेरी आंखों से दूर मत करो,मैं बिना राम के जीवित नहीं रह सकूगां।
सम्भव है कि मछली पानी के बिना जी सके और सर्प मणि के बिना दु:खी,दीन होकर जी सके, परन्तु मैं राम से अलग होकर नहीं जी सकता, राम मेरे प्राण हैं।

यह समाचार सारे नगर में आग की तरह फैल गया। सुनते ही श्रीराम आए, माँ कैकयी के चरणों में प्रणाम किया और पिताजी को सचेत किया और समझाया पिता जी। माँ मुझे बनवास भेज कर बहुत अच्छा किया, मुझे वहाँ ऋषि मुनियों की सेवा करने का सुआवर मिलेगा।
दशरथ ने राम को बाहों में भर लिया और बिलखने लगे, सारी रात रोते रोते कट गई। प्रात:काल हुआ। बनवासी वेश भूषा डालकर माँ कौशल्या के चरणों में प्रणाम करने राम आए तो माँ को जो दु:ख हुआ उसका वर्णन शब्दों में कैसे किया जा सकता हैं? सीताजी ने जब सुना तो वह भी पति के साथ जाने के माँ कौशल्या से आज्ञा मांगने आई तो मां ने कहा, बहू, तुम तो मेरे पास रहो।

सीता ने माँ के चरणों में प्रणाम करके सविनय प्रार्थना की,माँ मैं राम के बिना जीवित नहीं रह पाऊंगी,अत: आप मुझे आर्शीवाद दें कि मैं जी जान से पति की सेवा कर सकूं। माँ ने दोनों को राते हुए आर्शीवाद दिया। इतने में लक्ष्मण जी भी भ्रातृ-सेवा तथा सीता माँ की सेवा हेतु बनवास में जाने के लिए तैयार हो कर आ गए और माँ कौशल्या तथा सुमित्रा और कैकयी के चरणों में प्रणाम किया। सीता ,राम और लक्ष्मण तीनों पिताजी के पास आए। दु:खी,संतप्त पिताजी से राम ने कहा,पिता जी धैर्य रखिये, हमें आर्शीवाद दीजिए और बनवास में जाने की आज्ञा दीजिए।

आयोध्या के निवासी सभी रो रहे हैं। आयोध्या वीरान हो गई। दशरथ राम का विरह सहन नहीं कर पाए और प्राण शरीर से निकले और राम में लीन हो गए। जहां शहनाई बजती थी वहां मातम छा गया।
खुशी के साथ दुनियां में गम भी आते हैं।
जहां बजती है शहनाइयां वहां मातम भी छाते हैं।।

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