एक संत अपने आश्रम में बैठे थे। उनके पास रोज़ कई लोग अपनी परेशानियाँ लेकर आते—किसी को व्यापार में हानि हुई थी, किसी को नौकरी नहीं मिल रही थी, कोई रिश्तों में टूट रहा था। एक दिन एक युवक आया और बोला: “गुरुदेव, मैं बहुत बार हार चुका हूँ। अब मुझसे नहीं होता। शायद जीत मेरे भाग्य में है ही नहीं…”
संत मुस्कुराए और उसे आश्रम के पीछे ले गए। वहाँ एक छोटी-सी जगह पर एक कुदाली पड़ी थी और पास ही सूखी ज़मीन थी।
संत बोले, “यहाँ पानी बहुत गहराई में है। अगर तुम एक ही जगह बार-बार खोदते जाओगे तो पानी मिल जाएगा। लेकिन हर थोड़ी देर में जगह बदल दोगे, तो जीवनभर खोदते रहोगे और पानी नहीं मिलेगा।”
युवक ने पूछा, “इसका मेरी हार से क्या संबंध है?”
संत बोले: “बेटा, जीवन में भी जीत गहराई में छिपी होती है। पहली बार खोदो—हार। दूसरी बार खोदो—हार। सौवीं बार खोदो—फिर हार…पर हजारवीं बार खोदोगे—तो जीत का पानी फूट पड़ेगा।”
“हारें इस बात का प्रमाण हैं कि तुम लगातार प्रयास कर रहे हो। जो हजार बार हारने को तैयार होता है,वही एक बार जीतकर दुनिया को दिखाता है।”
युवक की आँखें चमक उठीं। उसने संत के चरण छुए और फिर से अपनी मंज़िल की ओर निकल पड़ा।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, हार अंत नहीं, सुधार का संकेत है। अडिग प्रयत्न ही जीत की असली कुंजी है। जीत हमेशा उसी के पास जाती है, जो हार से डरता नहीं बल्कि उससे सीखता है।








