धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से-215

द्वारका में एक सूर्य भक्त था सत्राजित। उसे सूर्य देव ने स्यमंतक नाम की चमत्कारी मणि दी थी। ये मणि रोज बीस तोला सोना उगलती थी।

एक दिन श्रीकृष्ण ने सत्राजित से कहा कि आप ये मणि राजकोष में देंगे तो इससे मिले धन से प्रजा की अच्छी देखभाल हो सकेगी।

सत्राजित ने श्रीकृष्ण को मणि देने से मना कर दिया। इस घटना के कुछ दिन बाद सत्राजित के भाई प्रसेनजित ने मणि चुरा ली। प्रसेनजित मणि लेकर जंगल में भाग गया। जंगल में एक शेर ने प्रसेनजित को मार दिया और खा गया। मणि जंगल में ही गिर गई।

सत्राजित को जब प्रसेनजित और अपनी मणि नहीं मिली तो उसने श्रीकृष्ण पर आरोप लगा दिया कि कृष्ण ने ही मेरी मणि चुराई है और मेरे भाई की हत्या कर दी है।

श्रीकृष्ण पर चोरी और हत्या का कलंक लग गया। श्रीकृष्ण ने उस समय क्रोध नहीं किया, धैर्य बनाए रखा और इस आरोप को गलत साबित करने के लिए जंगल की ओर चल दिए। जंगल में श्रीकृष्ण को शेर के पैरों के निशान दिखे और निशान के पास हड्डियों का ढेर दिखा। श्रीकृष्ण समझ गए कि प्रसेनजित को शेर ने मार दिया है और मणि यहीं कहीं गिर गई है।

श्रीकृष्ण मणि खोजते हुए एक गुफा में पहुंच गए। गुफा में जामवंत रहते थे। श्रीकृष्ण ने मणि मांगी तो जामवंत नहीं दी। इसके बाद दोनों का युद्ध हुआ। युद्ध में श्रीकृष्ण जीत गए। जामवंत समझ गए कि ये भगवान श्रीराम के ही अवतार हैं। इसके बाद जामवंत ने मणि श्रीकृष्ण को दे दी और अपनी पुत्री जामवंती का विवाह भी भगवान के साथ कर दिया। द्वारका लौटकर श्रीकृष्ण ने वह मणि जामवंत से लेकर सत्राजित को दे दी और पूरी सच्चाई बता दी। सत्राजित को अपनी गलती पर बहुत पछतावा हुआ।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, हमारे ऊपर जब भी झूठे आरोप लगे तो हमें धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए, बल्कि शांति से पूरी बात समझें और आरोपों को झूठा साबित करें।

Related posts

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—334

सत्यार्थप्रकाश के अंश—48

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—293

Jeewan Aadhar Editor Desk