बेंगलुरु
इंडियन कॉर्पोरेट इतिहास का एक युग खत्म होने जा रहा है। चर्चाएं है केि इन्फोसिस के प्रतिष्ठित को-फाउंडर्स 28,000 करोड़ रुपये कीमत के कंपनी के सभी 12.75% शेयर बेचने पर विचार कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि तीन साल पहले प्रमोटरों के इन्फोसिस छोड़ने के बाद से कंपनी चलाने के तौर-तरीकों से नाराजगी पैदा हुई। इसी वजह से वो यह बड़ा कदम उठाने पर विचार कर रहे हैं। ऐसा जान पड़ता है कि इन्फोसिस के बोर्ड और मैनेजमेंट के साथ जारी संघर्ष के मद्देनजर प्रमोटर्स इस कंपनी से पूरी तरह हट जाना ही बेहतर मान रहे हैं जिसे उन्होंने साल 1981 में स्थापित की और साल 1993 में आम लोगों के लिए कंपनी में हिस्सेदारी का रास्ता खोल दिया।
एन आर नारायणमूर्ति और नंदन निलेकणी की अगुवाई वाले प्रमोटर ग्रुप को इंजिनियर-आंट्रप्रन्योर्स की उस नई नस्ल को रास्ता दिखाने वाला माना जाता है, जो पैदा तो हुए मध्यवर्गीय परिवारों में, लेकिन अच्छी सैलरी की नौकरी करने की परंपरा तोड़ते हुए बिजनस शुरू करने का फैसला किया। दरअसल, 90 के दशक में देश में आर्थिक उदारीकरण आने से पहले मध्यवर्गीय परिवारों के लड़के-लड़कियां मोटी तनख्वाह वाली नौकरी पाकर ही धन्य हो जाते थे, लेकिन इन्फोसिस प्रमोटरों की अगुवाई में यह रवायत टूटी जिसकी बदौलत इंडियन सॉफ्टवेयर की गाथा पूरी दुनिया में फैली।