धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—24

जातिगत कार्य करने का विधान मनुष्य ने बनाया है, परमात्मा ने नहीं। वर्ग निर्धारण का कार्य मानव जनित है, प्रभु जनित नहीं। ईश्पर ने सबको एक जैसा बनाया है। ये बंटवारा मानव का किया हुआ है। लेकिन किसी भी कार्य को लेकर कार्य करने वाले में उत्साह होना चाहिए। अपने कार्य पर गर्व होना चाहिए, क्योंकि कोई भी कार्य छोटा नहीं होता। प्रत्येक कार्य की अपनी महता है।

अब्राहम लिंकन जब अमेरिका के राष्ट्रपति बने,तो उनके सम्मान में एक भोज आयोजित किया गया। भोज के बाद जब वे भाषण देने खड़े हुए,तो एक व्यक्ति जोर से चिल्लाया,”लिंकन महाशय,आप कदापि न भूलें कि आपके पिता दूसरों के जूते सिला करते थे।

“लिंकन ने अविचलित भाव से उत्तर दिया, “इस खुशी के क्षण में आपने मेरे पिता का स्मरण कराया,इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ। आपने सच कहा कि मेरे पिता दूसरों के जूते सिला करते थे। वे एक कुशल चर्मकार थे,जिसके लिए मुझे उन पर गर्व है।अपनी कर्मनिष्ठा के कारण ही उन्हें लोकप्रियता हासिल हुई थी। आपने शायद उनके जूते पहने भी होंगे। यदि वे आपको काटते हों,तो मुझे निसंकोच बताएं। मुझे भी जूतों की सिलाई और मरम्मत का अनुभव है,अतः मैं उन्हें ठीक कर दूंगा। यह मेरा वंश-परंपरागत व्यवसाय होने के कारण मुझे जूते सिलने में जरा भी शर्म नहीं आएगी।” ये ही बातें है जो मनुष्य को महानत्व प्रदान कर देती है।

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Jeewan Aadhar Editor Desk

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