धर्म

ओशो : शिकायत जाए, तो प्रार्थना आती है

अक्सर तुम जाते हो मन्दिर में प्रार्थना करने, और सिर्फ शिकायतें करने जाते हो: नाम प्रार्थना होता है। कि मेरी पत्नी बीमार है, कि मेरे बच्चे को नौकरी नहीं लग रही हैं,कि मेरे पास रहने को मकान नहीं है। और इसको तुम प्रार्थना कहते हो। ये सब शिकायते हैं, ये सब शिकवें हैं। यह तुम्हारा ईश्वर के प्रति श्रृद्धा का भाव नहीं है। यह तुम ईश्वर के होने पर संदेह उठा रहे हो- कि तेरे होते हुए,और मेरे पास मकान नहीं है, अगर तू है, तो मकान होना चाहिए। और अगर मकान नहीं हुआ, तो समझ रख: तू भी नहीं है। भीतर छिपी यह भावदशा है कि मैं तुझे मानूंगा,अगर तू मेरी मांगें पूरी कर दे। अगर तूने मेरी मांग पूरी नहीं की, तो सोच-समझ रख। एक भक्त खोया फिर तूने। फिर मैं तेरा दुश्मन हो जाऊंगा।
और भीतर के गहरे हो तुम जानते हो कि कहां है तू। कहां कौन है। यह तो देख रहे है, एक कोशिश करके देख लेते हैं कि शायद मिल जाए। मूलत: मकान में तुम्हारा रस है, परमात्मा में नहीं।
तुम्हारी प्रार्थनाएं शिकायतों कें छिपे हुए ढंग है, रंगी-पुती शिकायतें है। भीतर तो शिकायत की गंदगी हैं,ऊपर से सुंदर रंग चढ़ा दिए है, टीम-टाम, नया बना दिया है। किसको धोखा दे रहे हो?
लेकिन शिकायते मिटे,शिकवे मिटे,तो प्रार्थना का जन्म होता है। और प्रार्थना का जन्म इस जगत में अर्पूव बात है। प्रार्थना का अर्थ हैं अहोभाव। प्रार्थना का अर्थ है धन्यवाद,आभार। प्रार्थना का अर्थ है:जो है,वह मेरी पात्रता से ज्यादा है।
तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा नहीं,शिकवा तो नहीं।
परमात्मा न भी मिले,तो भी जिंदगी प्यारी है,अपूर्व है। और जिंदगी में ही उतरते जाओगे, तो परमात्मा भी करीब आता जाएगा। जिंदगी में ही छिपा है। यह जिंदगी उसका ही घूंघट है। तुम उठाओगे जिंदगी का घूंघट और भीतर परमात्मा मुस्कुराता मिलेगा।
तेरे बिना जिंदगी जिंदगी नहीं,जिंदगी नहीं।
यह भी बात ठीक है। जिंदगी को प्रेम करो बिना शिकयत के और यह भी स्मरण रखो कि जब तक तू नहीं है- सब है, फिर भी कुछ कम है। सब है,सब तरह से तूने पूरा किया है,लेकिन तेरे बिना,तेरी मौजूदगी के बिना कुछ-कुछ कम है। यह शिकायत नहीं है, यह प्रार्थना है।
प्रार्थना अगर मांगे, तो एक चीज मांगे- परमात्मा को मांगे। प्रार्थना कुछ और न मांगे। तुमने कुछ और मांगा कि प्रार्थना गलत हुई। तो ठीक मनु हंसा। शिकवा गया,शिकायत गयी, प्रार्थना बन रही है। और उस प्रार्थना में निश्चित ही यह भाव भी कुछ सघन होगा कि तेरे बिना जिंदगी, जिंदगी नहीं। बहुत है, सब कुछ है,मगर फिर भी कुछ चूक रहा है।
परमात्मा ही जब उपस्थित हो जाता है बाहर-भीतर, तो ही परिपूर्ण परितृप्ति,तो ही परितोष। फिर उसके पार न तो शिकायत है, न प्रार्थना है। पहले शिकायत चली जाती है, फिर एक दिन प्रार्थना भी चल जाती है। शिकायत जाए, तो प्रार्थना आती है। प्रार्थना भी एक दिन जाएगी, उसी दिन परमात्मा भी उतर आएगा।

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