धर्म

सत्यार्थप्रकाश के अंश—58

जो आप लोगों ने पूर्व और पुनर्जन्म नहीं माना है वह ईसाई मुसलमानों से लिया होगा। इस का भी उत्तर पुनर्जन्म की व्याख्या से समझ लेना। परन्तु इतना समझो कि जीव शाश्वत अर्थात् नित्य है और उस के कर्म भी प्रवाहरूप से नित्य कर्म हैं। कर्म और कर्मवान् का नित्य सम्बन्ध होता है। क्या वह जी कहीं निकम्मा बैठ रहा था वा रहेगा? और परमेश्वर भी निकम्मा तुम्हारे कहने से होता है पूर्वपर जन्म न मानने से कृतहानि और अकृताभ्यागम,नैर्घृण्य और वैषम्य दोष भी ईश्वर में आते हैं,क्योंकि जन्म न हो तो पाप पुण्य के फल-भोग की हानि हो जाय। क्योंकि जिस प्रकार दूसरे को सुख दुख,हानि लाभ पहुँचाया होता है वैसा उस का फल विना शरीर धारण किये नहीं होता। दूसरा पूनर्जन्म के पाप पुण्यों के विना के विना सुख दुख की प्राप्ति इस जन्म में क्योंकर होवे? जो पूर्वजन्म के पाप पुण्यानुसार न होवे तो परमेश्वर अन्यायकारी और विना भोग किये नाश के समान कर्म का फल हो जावे इसलिए यह भी बात आप लोगों की अच्छी नहीं।

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