पंजाब

सरकार और इंसान की अनदेखी का खमियाजा भुगत रहे है जीव, देशी गाय की बची महज 8 नश्ल

पातड़ (अनूप गोयल की बरीस रेज़गारी बुजरक से विशेष बातचीत)

क्या आपको पता है कि आपके आसपास रहने वाले कई जीव—जंतु विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए है या फिर काफी कम हो गए है। आप अपने आसपास नजर दौड़ाओगे तो पता चलेगा कि बहुत से जीव अब देखने को नहीं मिल रहे या फिर काफी कम संख्या में कभी—कभी देखने को मिलते है।
असल में, मौसम में आ रहे बदलाव..बदलता चक्रवात..धरती का गर्म होना.. ग्लेशियरों का पिघलना.. समुद्र में पानी का बढ़ना और काटे जा रहे जंगलों कारण बेजुबान पक्षियों की प्रजातियों भी समाप्त हैं। बहुत कम प्रजातियां बदल रहे हलातों से मुकाबला करके अपने आप को बचा रही हैं। पिछले दो दशकों के अंदर पंजाब में भी जीवों की कई प्रजातियां ख़त्म हो चुकी हैं। स्थिति ऐसी बनी हुई है कि पठानकोट जिले के धार कलां ब्लॉक में गिद्धों की आबादी को बढ़ाने के लिए चलाया जा रहा एक प्रोजेक्ट भी साल 2013 से ले कर साल 2015 तक ख़र्च न मिलने करके बंद हो गया है और गिद्धों की संख्या बढ़ने की बजाय फिर घटनी शुरू हो गई है।

जानकारी देते हुए समाज सेवीं बरीस रेज़गारी बुजरक

लोग जागृति मंंच पंजाब के प्रधान और आर.टी.आई. एनालिस्ट बरीस रेज़गारी बुजरक ने जानकारी देते बताया कि पिछली डेढ़ सदी में जीव—जंतू, पशु—पक्षियों की 762 प्रजातियां ख़त्म हो चुकी हैं। आने वाले सालों दौरान वनस्पती और जीवों की लगभग 20 प्रतिशत यानि 12,000 से ज़्यादा प्रजातियां ख़त्म होने की संभावना है। देशभर में देसी गाओं की 29 नश्लों बीच में से 21 नश्ल ख़त्म हो चुकी हैं। वातावरण तबदीली और जंगलों के काटे जाने से प्रतिदिन वनस्पती, जीव -जंतुओं आदि की 137 प्रजातियें ख़त्म हो रही हैं। इसप्रकार देखा जाए तो प्रतिवर्ष लगभग पचास हज़ार नस्लों को हम ख़त्म कर रहे हैं।

ज़िला पटियाला की तहसील समाना के नज़दीक पड़ते गुरदयाल पुरवाई जंगली जीव सैंचरी का 620.53 हैंकटेयर एरिया है। इस जंगली जीव सैंचरी में सरकारी तौर पर जीव जंतुओं की संख्या की गिनती कभी नहीं हुई है। परन्तु अंदाज़न 193 नील गाएं, 17 फाड़े, 145 गीदड़, 21 जंगली बिल्लियाँ, 102 मोर, 1730 बंदर हैं। यह संख्या केवल अंदाजाभर है। क्योंकि इस जंगली जीव सैंचरी में कभी बड़ी संख्या जंगली सूअर, दर्जनों की संख्या तीतर—बटेर भी देखे जाते थे। इस सैंचरी के आसपास किसानों की उपजाऊ ज़मीनें होने के कारण जंगली सूअर, फाड़े, नील गाएं आदि फसलों का नुक्सान करते रहते हैं। इस कारण किसानों की तरफ से कड़का लगाना, बिजली का करंट तारों में छोड़ने जैसे ढंग अपनाएं जाते हैं।

इस जंगली सैंचरी में कभी भी जीव—जंतुओं के लिए पीने के लिए पानी, सुरक्षा, ख़ुराक आदि के कोई प्रबंध बढ़िया नहीं रहे हैं। इस कारण यहां पर बहुत से जीव-जंतू ख़त्म हो चुके हैं। इस समय पंजाब में दस जंगली जीव सेंचुरी और चल रही हैं। इनकी स्थिति भी बहुत बढ़िया नज़र नहीं आ रही। बरीस रेज़गारी बुजरक ने कहा कि तिब्बत, लेह—लद्दाख़ की पहाड़ियों में लगभग सौ, हिमालय के नज़दीक एक हज़ार किस्म की प्रजातियां हैं। इनमें पांच सौ प्रजातियां पश्चिमी हिमालय, 536 पूर्वी हिमालय में बताई जाती हैं। इनमें तीतर की 49 नश्लें में से 18 इन्हीं पहाड़ियों में रहती हैं। पूर्व उतर में 60 प्रतिशत जीव—जंतुओं का रहना बसेरा है। इनमें से बहुत कम प्रजातियें बदल रहे मौसम का मुकाबला कर सकती हैं।
चंबल नदी 435 किलोमीटर लम्बी है। इसमें 86 डालफिन, 996 घड़ियाल, 209 कछुआ और दुर्लभ जीव—जंतू रहते हैं।

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बरीस रेज़गारी बुजरक ने बताया कि जिला पठानकोट नज़दीक धार कलां ब्लाक में चीलों को बचाने और पारिवारिक विस्तार करने के लिए एक रेस्टोरैंट खोला गया था। 21 लाख रुपए की लागत के साथ शुरू हुए इस गिद्ध घर के नींव का पत्थर अक्तूबर 2009 में रखा गया था। पंजाब में यह पहली किस्म का रेस्टोरैंट था। जहाँ लुप्त हो रही गिद्धों को बचाया जाने का प्रयास किया गया था। इसमें गिद्धों की संख्या भी 250 से बढ़कर तकरीबन 450 हो गई थी। भारत सरकार के जलवायु और वन विभाग की मदद के साथ खोला गया यह गिद्ध रेस्टोरैंट भी साल 2013 के बाद बंद हो गया।

कई किस्मों की प्रजातियां को ज़मीनें सपाट होने के कारण अपनी होंद बचाने के लिए घरों की छतों पर घोंसले ड़ालने पड़ रहे हैं। परन्तु केंद्र या राज्य सरकार की तरफ से इस कुदरती उथल -पुथल की और ध्यान नहीं दिया जा रहा। इसके चलते इन जीव—जंतुओं का जीवन अब संकट में दिखाई देने लगा है।

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