पंजाब

जगविंदर बना दुनियां के लिए प्रेरणास्त्रोत..जो देखता है—बस देखता ही रह जाता है

पातड़ा (अनूप गोयल)
आपने हाथों की लकीरें दिखाकर अपना भविष्य पूछते लोगों को अवश्य देखा होगा..लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते है जिनके दोनों हाथ ही नहीं होते..ऐसे लोग अपनी मेहनत और लग्न शक्ति के बल पर अपना भविष्य खुद लिखते है। ऐसे ही एक शख्सियत है पातड़ा के जगविंदर सिंह।
जन्म से दोनों हाथ ना होने के बाद भी वे किसी के ऊपर निर्भर नहीं है। अपनी मेहनत और लग्न से जगविंदर सिंह ने वह कर दिखाया जो अच्छे भले तंदुरुस्त शरीर वाले भी नहीं कर सकते । उसको देख कर उसके जज्बे को सलूट करने को दिल करता है।

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जगविंदर सिंह का जन्म पातड़ा के एक सिख परिवार के घर में हुआ। जन्म के समय ही दोनों हाथ ना होने के कारण माता पिता सोच—सोच कर परेशान थे कि उसकी जिंदगी कैसे आगे बढ़ेगी। ‘वाहेगुरु तेरा का भाणा मीठा लागे, इस सोच को लेकर जगविंदर की माता ने जब वह 4 साल का हुआ तो उसको शरीर को चुनौतियों से लड़ने के लिए पैर की उंगलियों के सहारे पैसिंल के साथ लिखना—पढ़ना सिखाया।
माता-पिता उसको स्कूल में दाखिल करवाने के लिए गए तो किसी भी स्कूल ने उसको दाखिला देने की हिम्मत नहीं दिखाई। निराश माता—पिता को लगा कि उनका बेटा अनपढ़ ना रह जाए। इस दौरान पातड़ा के विक्टोरिया पब्लिक स्कूल में एक दिन जगविंदर सिंह की माता आखिरी उम्मीद लेकर पहुंची। स्कूल संचालक ने जगविंदर की लग्नशक्ति को देखते हुए स्कूल में दाखिला दे दिया। पढ़ाई के पहले वर्ष में ही पैरों की उंगलियों के सहारे दूसरों बच्चों से ज्यादा नंबर लेकर पहली लड़ाई पर जीत हासिल करके जगविंदर ने उसका मन जीत लिया। इसके बाद जगमिंदर ने मन में ठान लिया कि वह किसी भी काम में किसी के ऊपर निर्भर नहीं होगा। वह दूसरों की तरह अपने सारे काम खुद करेगा।

इसके बाद उसने मां से घरेलू काम सीखने आरम्भ कर दिए। साफ—सफाई, चाय बनाना, खाना बनाने से लेकर उसने प्रत्येक काम दक्षिता हांसिल कर समाज को मेहनत रुपी आईना दिखाया। कड़ी मेहनत और जज्बे से जगविंदर ने अपने—आपको इस काबिल बनाया कि आज वह अपने पैरों से ड्राइंग पेंटिंग में अवार्ड जीतकर अपने माता-पिता का नाम रोशन कर रहा है। उसने जब पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की फोटो अपने पैरों की उंगलियों के सहारे बनाकर संगत दर्शन के दौरान बादल को भेंट की तो मुख्यमंत्री प्रकाशसिंह बादल ने जगविंदर की बहुत प्रशंसा की।
जगविंदर ने 5 साल की उम्र में अमृत भी छक (ग्रहण) लिया था, जिसकी पालना बड़े दृढ़ इरादे से करता रहा है। उसने दुनियां की बहुत बड़ी आर्टिस्ट इंग्लैंड की अंजलि ईलामिन की अध्यक्षता में हो रही पेंटिंग प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता तो दुनियांभर का ध्यान उनकी तरफ गया। जगविंदर सिंह बताते है कि 5 साल की उम्र में अपने दोस्तों को साइकिल चलाते हुए देखा तो उसके मन में इच्छा हुई कि वह भी दूसरों की तरह साइकिल चलाना सीखेंगा। लेकिन उनके परिवार वाले डरते थे कि कभी वह चोट ना खा ले। इस दौरान उसके पिता ने उसकी छोटी बहन को साईकिल दिया। उसने इसी साईकिल से घरवालों से चोरी—छिपे प्रैक्टिस करनी आरंभ कर दी।

धीरे-धीरे आज वह साइकिलिस्ट बन चुका है। उसने पंजाब में जालंधर में हुए राज्य स्तर की 300 किलोमीटर रेस में हिस्सा लिया और उसमें पूरे तंदुरुस्त शरीर वालों को पछाड़ते हुए टॉप रहा । उस के हौसले इतने बुलंद हैं कि अब वह अंतर्राष्ट्रीय साइकिलिंग प्रतियोगिता में भाग लेना चाहता है।
जगविंदर सिंह ड्राइंग टीचर बनना चाहते थे। लेकिन पंजाब सरकार ने लगातार उसकी अनदेखी की। बादल सरकार से आश्वासन तो बहुत मिले, परंतु मिला कुछ नहीं। कैप्टन अमरिंद्र सरकार में जगविंदर के हौसले, जज्बा, लग्न और मेहनत को तटस्थ रखकर चौथे दर्जे की नौकरी दी। जगविंदर का सवाल है कि जब पंजाब सरकार क्रिकेट में मैच जीतने पर महिला खिलाड़ी को डीएसपी पद की नौकरी दे देती है, लेकिन ड्राइंग और साइकिलिंग में दक्षता हासिल होने के बाद भी दिव्यांग को टीचर की नौकरी क्यों नहीं दे सकती?
जगविंदर की माता का ​कहना है कि जब मेरा होनहार प्रतिभाशाली बेटा दूसरे स्टेट में जाता है वहां के मुख्यमंत्री मेरे बेटे को अपने घर पर रखते हैं और इसका पूरा मान—सम्मान करते है, परंतु यहां की सरकारों ने जगविंदर की प्रतिभा और लग्नशक्ति को पूरी तरह से अनदेखा किया है।

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