आदमपुर (अग्रवाल)
जज्बा, घर-घर वेद और योग की ज्योति जलाने का। जज्बा, गरीबों का हमदर्द बनने का। जज्बा, योगपुरुष बनने का। इसी जज्बे से उन्होंने उम्र को मात दे दी है। जीवन के 9 दशक पार करने के बाद भी स्वामी ओमानंद सरस्वती देश ही नही विदेशों में भी योग की अलख जला रहे है। अब तक करीब 40 देशों में विदेशियों को योग की पद्धति सिखा चुके है। नियमित योग करना व गरीबों की समस्या सुनना उनकी दिनचर्या में शामिल है। कोई इन्हें शिक्षा का योद्धा कहकर पुकारता है तो कोई योगपुरुष के नाम से जानता है। स्वामी का कहना है कि उम्र सिर्फ नंबरों का खेल है। स्वामी ओमानंद आदमपुर के टेलवाला कुटिया हनुमान मंदिर में वनवासी कल्याण आश्रम के तत्वावधान में साधकों को योगाभ्यास करवा रहे है। शिविर में आदमपुर के अलावा हिसार, फतेहाबाद व सिरसा के साधक भी पहुंच रहे है।
16 वर्ष की उम्र में त्यागा घर
स्वामी ओमनंद सरस्वती के अनुसार 16 वर्ष की आयु में घर-बार त्यागकर स्नात्तक, स्नातकोत्तर, लॉ और पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। 31 वर्ष की आयु में इन उपाधियों को त्यागकर एकांत में साधनारत हो गए। लगातार 15 वर्षों तक नर्मदा के उद्गम स्थल पर हिमालय की कन्दराओं, एवरेस्ट की तलहटी, ब्रह्मपुत्र नदी किनारे, असम के जंगलों, कश्मीर के वनों व गंगोत्री और नैनीताल में जाकर साधना की। वन्य प्राणियों से मित्रता करके 15 वर्ष तक कन्द-मूल पत्ते खाकर साधना की और 13 अप्रैल 1971 में 46 वर्ष की आयु में ऋषिकेश में स्वामी योगेश्वरानंद महाराज से सन्यास दीक्षा ली। इसके बाद 1 वर्ष तक योगेश्वरानंद योग महाविद्यालय में आचार्य के पद पर रहकर योगाभ्यास करते रहे।
ओमानंद योगाश्रम की स्थापना
1972 में मौनी अमावस्या की रात्रि को काल भैरव की गुफा में वापस आ गए और काल भैरव गुफा, ब्रह्मर्षि गुफा और मनधारा जलप्रताप में रहकर के समाधिस्थ होकर वेदमंत्रों का साक्षात्कार करने लगे और समाधि से उठकर लिपिबद्ध करते रहे। लगातार 5 वर्ष तक यह क्रम चलता रहा इसके बाद ओम योग साधना ग्रन्थ पूर्ण हुआ। जुलाई 1972 में मनधारा जलप्रपात में ओमानंद योगाश्रम की स्थापना की। इस समय स्वामी ओमानंद सरस्वती इंदौर में ओमानंद योग विद्यालय, वेद विद्यालय, संस्कृत विद्यालय, चिकित्सालय, अनाथ आश्रम और गौशाला का संचालन कर रहे है।