धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से-29

एक समय की बात है, एक पहाड़ी पर एक काली चिड़िया रहती थी । काली चिड़िया के घोंसले में उसके दो बच्चे थे। एक दिन काली चिड़िया को अपने बच्चों के लिए दाना चुगने के लिए बाहर जाना था। चिड़िया ने अपने बच्चों को समझाया के उनके लौटने तक घोंसले से बाहर मत जाना। यह कहकर काली चिड़िया चली गयी। बच्चे बहुत शरारती थे वो चिड़िया के जाते ही घोंसले से बाहर निकल गए। अचानक एक शिकारी ने उनको पकड़ लिया। अब दोनों बच्चे रोने लगे। वो अब अपनी मां की बात को याद कर पछता रहे थे।

उधर,जब शाम को काली चिडियां वापिस लौटी तो बच्चों को घोंसले में ना देखकर उसे चिंता होने लगी। वो इधर–उधर बच्चों को ढूंढने लगी। एक कोयल ने चिड़िया को बताया के एक शिकारी ने उसके बच्चों को नदी के किनारे पकड़ रखा है। कोयल से चिड़िया का दुख देखा नहीं जा रहा था और उसे उस पर दया आ गई। उसने चिड़िया से कहा, बहन! तुम चिंता मत करो, हम दोनों मिलकर तुम्हारे बच्चों को उस शिकारी की कैद से बाहर निकालेंगे। इसके बाद चिड़िया और कोयल वहां पहुँच गई, जहां शिकारी ने काली चिड़िया बच्चों को कैद कर रखा था।

नदी किनारे एक पेड़ पर शहद की मक्खियों का एक छत्ता था। उन्हें एक योजना बनाई, उन दोनों ने अपनी चोंच में थोडा शहद लाकर शिकारी के पास ले जा कर बिखेर दिया और मक्खियों को उड़ा दिया। वो दोनों पेड़ की शाखाओं में छुप गयीं । मक्खियां शिकारी को जाकर काटने लगी। शिकार अपना सब कुछ छोड़ कर भाग गया। इसका फायदा उठाकर चिड़िया और कोयल ने बच्चों को शिकारी के जाल से छुड़ा लिया। बच्चे मां से मिलकर बहुत खुश थे। चिड़िया ने कोयल का शुक्रिया अदा किया। बच्चों ने अपनी गलती के लिए अपनी मां से माफ़ी मांगी और उन्हें सबक मिला के कभी भी बड़ों की बातों को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए।

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