एक गांव में भोला नाम का एक आदमी रहता था। वो पढ़ा -लिखा नहीं था और बहुत ही सीधा–साधा था। वह अक्सर लोगों को चश्मा लगाकर पढ़ते देखा करता था। वो मन ही मन सोचता रहता के अगर मेरे पास भी ऐसा चश्मा होता तो में भी इन लोगों की तरह पढ़ सकता। यह सोचकर वो बहुत दुखी हो जाता और उसके मन में भी पढ़ने की इच्छा होती । एक दिन उसने सोचा मुझे ऐसा चश्मा खरीदने के लिए शहर जाना होगा और जिससे में भी आराम से पढ़ सकूंगा ।
एक दिन भोला चश्मा लेने के लिए शहर चला गया। शहर में पहुंचते ही भोला एक चश्मे वाली दुकान में चला गया और उसने दुकानदार से बोला, मुझे पढ़ने के लिए एक चश्मा चाहिए। दुकानदार ने उसे बहुत सारे चश्मे दिखाए और उसे पढ़ने के लिए एक किताब दी। भोला ने एक–एक कर सभी चश्मे लगाए पर वो किताब में से कुछ भी नहीं पढ़ पा रहा था। भोला ने कहा मुझे इसमें से कोई भी चश्मा पसंद नहीं है। कोई और अच्छा—सा चश्मा दिखाएं।
दुकानदार भोला की तरफ हैरानी से देख रहा था , अचानक उसकी नजर किताब पर पड़ी उसने देखा, कि भोला ने तो किताब को ही उल्टा पकड़ा हुआ था । दुकानदार बोला क्या तुम पढ़े -लिखे नहीं हो?
भोला ने कहा मुझे पढ़ना नहीं आता, इसीलिए तो में चश्मा खरीद रहा हूं। ताकि मैं भी दुसरे लोगों की तरह पढ़ सकूं। परन्तु इन सभी चश्मों में किसी भी ही चश्मे के साथ नहीं पढ़ पा रहा हूं।
दुकानदार को अपने भोले -भाले ग्राहक की नादानी पर हंसी भी आ रही थी और तरस भी । उसने कहा, भोला ऐ मेरे मित्र! तुम बहुत भोले हो, केवल चश्मा लगा लेने से पढ़ना -लिखना नहीं आता। चश्मा लगाने से हमें सिर्फ साफ़ दिखाई देता है न के पढ़ना लिखना। सबसे पहले तुम शिक्षा ग्रहण करो फिर तुमे पढना और लिखना भी आ जायेगा और वो भी बिना चश्मों के , समझे।
प्रेमी सुंदरसाथ जी, सत्संग तो आपको परमात्मा से मिलाने का रास्ताभर है, इस रास्ते पर चलकर दूरी तो आपको ही दूर करनी पड़ेगी।