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आखिर क्यों आंधी-तूफान की भविष्यवाणी ‘हवा’ में उड़ गई?

नई दिल्ली,
हमारे देश का मौसम विभाग, बारिश, तूफान, मॉनसून और सूखे को लेकर सटीक भविष्यवाणियां क्यों नहीं कर पाता? मौसम विभाग ने कुछ दिन पहले ये चेतावनी जारी की थी कि उत्तर भारत में तूफान आने वाला है। लेकिन तूफान उतनी तीव्रता के साथ नहीं आया, जिसकी आशंका थी। इसके बाद मौसम विभाग ने पिछले हफ्ते शुक्रवार को एक चेतावनी जारी की थी।
जिसमें ये कहा गया था, कि रविवार और सोमवार को दिल्ली और NCR में तेज़ हवा के साथ बारिश हो सकती है। ये भविष्यवाणी की गई थी, कि हवा की रफ्तार 50 किलोमीटर प्रति घंटा रहेगी, लेकिन ये पूर्वानुमान गलत साबित हुआ। रविवार शाम को जब आंधी आई, तो हवा की रफ्तार 50 के बजाए 100 किलोमीटर प्रति घंटा से भी ज़्यादा थी।
इस रफ्तार के लिए हमारा सिस्टम तैयार नहीं था। इसलिए कई जगहों पर दुर्घटनाएं हुईं और तेज़ हवाओं और बिजली गिरने ती वजह से 70 से ज़्यादा लोग मारे गये। मारे गए लोगों में से 42 उत्तर प्रदेश के हैं, 14 पश्चिम बंगाल के, 12 आंध्र प्रदेश के, दो दिल्ली के और एक उत्तराखंड के हैं और ये आंकड़ा बढ़ भी सकता है। सोमवार को एक बार फिर मौसम विभाग ने अगले दो दिनों की भविष्यवाणी की है। जिसमें कहा गया है, कि जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, असम, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, केरला, और कर्नाटक में बारिश हो सकती है और तेज़ हवाएं चल सकती हैं।
अगले दो दिनों को लेकर मौसम विभाग का ये कहना है, कि देश के कुछ हिस्सों में 50 से 70 किलोमीटर की रफ्तार से हवाएं चल सकती हैं और पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी भी हो सकती है। इसके अलावा राजस्थान सहित कुछ हिस्सों में धूल भरी आंधी का भी अनुमान लगाया गया है।

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हालांकि ये भविष्यवाणियां सही होंगी या नहीं.. कहा नहीं जा सकता। 8 मई 2018 को मौसम विभाग की तरफ से ये चेतावनी दी गई थी, कि दिल्ली NCR सहित देश के कुछ हिस्सों में तेज़ हवाओं के साथ भारी बारिश की आशंका है। इसके बाद जगह-जगह स्कूल बंद कर दिए गए। लोगों को सलाह देते हुए एडवाइज़री जारी कर दी गई। ये कहा गया कि बहुत ज़रूरी काम न हो तो लोग घर से बाहर न निकलें, लेकिन आंधी-तूफान की भविष्यवाणी उन्हीं दावों के साथ ‘हवा’ में उड़ गईं। उस दिन तूफान आया ज़रुर था, लेकिन, हवा की रफ्तार काफी कम थी। यानी मौसम विभाग जब ये कहता है, कि तूफान आएगा, तो आता नहीं। जब वो ये कहता है, कि हवा की रफ्तार कम होगी, उस दिन हवा मौसम विभाग के सारे दावों की पोल खोल देती है। तूफान दोगुनी रफ्तार से आता है।
भारतीय मौसम विभाग की स्थापना आज से 143 वर्ष पहले, सन 1875 में की गई थी। तब से लेकर अब तक भारत में मौसम की जितनी भी भविष्यवाणियां की गईं, उनमें से ज़्यादातर ग़लत ही साबित हुई हैं। वर्ष 2017 में India Meteorological Department ने बारिश को लेकर जितनी भी भविष्यवाणियां की थी, उनमें से 44 फीसदी ग़लत साबित हुई। हालांकि, अगर आप इसकी तुलना International Weather Agencies के आंकड़ों से करेंगे, तो हमारा मौसम विभाग कहीं नहीं ठहरता। London, Miami, New York और Dubai जैसे शहरों में मौसम विभाग की भविष्यवाणी पूरे साल भर में 80 से 85 फीसदी सही और सटीक साबित होती हैं।

मौसम विभाग की इन असफलताओं के बीच ये समझना भी जरूरी है कि ये अनुमान किस तरह लगाए जाते हैं और इनका मतलब क्या होता है? मौसम का पूर्व अनुमान लगाने के लिए मौसम विभाग अलग-अलग जगहों से Data को Collect करता है। फिर उन जानकारियों को System में Feed करके एक Algorithm की मदद से मौसम की भविष्यवाणी की जाती है। आसान भाषा में कहें, तो ये एक प्रकार से गणित के एक सवाल की तरह होता है। जिसमें अलग-अलग जगहों से इकट्ठा की गई जानकारियों को जोड़कर सवाल का हल निकाला जाता है। ग़लत आंकलन की एक बड़ी वजह ये है, कि हमारे पास मौसम की भविष्यवाणी करने वाले High-Tech Prediction Tools नहीं हैं।

भारत के मौसम विभाग के पास इस वक्त क़रीब 679 Automatic Weather Stations हैं। इसके अलावा 550 Observatories, 43 Weather Balloons, 24 Radars और 3 सैटेलाइट्स हैं। जिनसे जानकारियां हासिल की जाती हैं। लेकिन, भारत के फैलाव को देखते हुए, ये संख्या काफी कम है। जिसकी वजह से कई बार मौसम विभाग सटीक जानकारी नहीं दे पाता। एक समस्या ये भी है, कि हमारे पास मौसम वैज्ञानिकों की कमी है। समय के मुताबिक भारत में तकनीक का विकास तो हुआ है, लेकिन उस तकनीक को इस्तेमाल करने वाले Professionals और वैज्ञानिकों की संख्या नहीं बढ़ी।
जो लोग मौसम वैज्ञानिक बनते भी हैं, वो या तो विदेशों में काम करने चले जाते हैं या फिर Private Agencies को Join कर लेते हैं। जब मौसम विभाग ये कहता है कि उत्तर भारत में किसी साल सामान्य बारिश हुई, तो उससे ये पता नहीं चलता कि किसी एक हिस्से में तो भारी बारिश की वजह से बाढ़ आ गई और दूसरे हिस्से में बारिश ना होने की वजह से लोग प्यासे मर रहे हैं। ये गड़बड़ी इसलिए होती है, क्योंकि फिलहाल मौसम विभाग ज़िले के आधार पर मौसम का अनुमान जारी करता है और इन अनुमानों के लिए Input के तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले आंकड़े जिन केंद्रों में जमा होते हैं, उनके बीच कई बार 200 किलोमीटर से भी ज़्यादा की दूरी होती है। यानी मौसम का अनुमान जारी करने के लिए ज़रूरी तत्व, जैसे, धूल, एरोसोल और नमी से जुड़े आंकड़ों में बड़ा अंतर रह जाता है और इसलिए मौसम विभाग के अनुमान में त्रुटियां देखने को मिलती हैं ।

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